चतुर्भुज दास | Chaturbhujdaas

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Chaturbhujdaas by कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Shastriगोकुलानंद शर्मा - Gokulanand Sharmaब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma

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कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Shastri

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गोकुलानंद शर्मा - Gokulanand Sharma

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ब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ इनके ४९ पद एवं समेया के पद नामक एक ग्रन्थ हमने देखा है। इनका एक ग्रन्थ ' द्वादशा यहा ' नामक ओर देखने में आया है, जिसमें से. १४७६० लिखा है । जान पडता हे यह पमय अशुद्ध है। संभव हैं यद्द সন্য किसी दूसरे चतुर्भुगदास का हो । * हित जू की मंगल ” नामक इनका एक ओर ग्रन्थ खोज में मिला है ( २८० ) स्वामी चतुभुजदासजी-अश्छाप वाले इसी नाम के कवि से पृथक्‌ हैं। उनका समय १६२५ था और इनका से, १६८४ | इनके बनाए हुए (१) धमेविचार, ( २) सिच्छसार (३) दितउपदेश (४ ) पतितपावन ( ५ ) मोहनी जस ( ६ ) अनन्य भजन (७ ) राधाप्रताप (८) मंगलरूसार ( ९ ) विसुख सुखभंजन नामक ग्रन्थ हमने उत्रपुर में देखे हैं। 'द्वादशयदा भी इन्ही की एक रचना है। प्र, त्रे, खोज से इनके एक ओर ग्रन्थ ' हित कौ मंगल '* का पता चलता है ” “ ( १०२२/२ ) चतुभुजदास कायस्थ । अन्थ-मचुमालती की कथा। रचनाकाछ से, १८३७ के पूर्व [ खोज १९०२ ] ?? प्रस्तुत उद्धरणों में घिशिष्ट शब्दों के परस्पर विरुद्ध-वर्णन पर ध्यान देने से विद्वान लेखक की भपश्तम्बद्ध उक्तियों का स्वये पता चल जाता है। , शमी कु दिन पूर्व पं, कालिकाप्रसाद दीक्षित ' कुधुमाकर * ने ° शङ्ख अभिनन्दन ग्रन्थ ? (सा. खे, पत्र १७, १८ ) में मध्यप्रदेश के दिन्दी कवियों का परिचय देते हुए इसी त्रुटि को क्षपनी गवेषणा बना डाछा है । न्होनि लिखा है :- “ इनमें से कंभनदास ओर चतुर्भुजदास गढा ( जबलपुर ) के निवासी थे | चतुर्भुजदास कुंभनदासजी के पुत्र थे । 'द्वादशयश ” * भक्ति प्रताप ' और * हितजू कौ मेण ? इनके मुख्य अन्थ हैँ। इनके सम्बन्ध में नाभादास ने अपने “ भक्तमाल ' में लिखा हैं :--- गायो भक्त प्रताप सबहि दास्न्त कहायो। राधा অন্ন भजन अनन्यता वगे बटायो॥ मुरलीधर की छाप कवित अतिदही লিহৃত্তা। भक्तन कौ पद-रेणु बहै धारा सिर-भूषण ॥




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