श्री श्री चैतन्य चरितावली खंड 1 | Shri Shri Chaitanya Charitawali Khand 1

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Shri Shri Chaitanya Charitawali Khand 1 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ও भी भूख इतनी ख्गती कि सेर तीन पाव अन्न यदि मिरु जता तो उसे प्रेमके साथपालेता! शरीरकी दशा विचित्रहीहो गयी | बदरीनारायणजीके बड़े दखाजेपर जहाँ मैं रात्रिको पड़ा रहता था वहीं एक साधुद्वारा माहछम हुआ कि यहाँसे छः-सात मीक ओर ऊपर एक वघुधारा नामका स्थान है) वह स्थान भी बढ़ा सुन्दर है और वहाँ दो बहुत पुराने महात्मा भी रहते हैं। मैंने सोचा--जब यहॉतक आ गया हूँ, तब इस सुयोग- 'को हाथसे क्यों छोड़ूँ, मरूँ चाहे जौऊँ उन महापुरुषोंके दशेन करने चाहिये। जानकी बाजी छगाकर नंगे ही पाँवोंसे वस्चुधारा- को चल पड़ा । व्यासगुफा, गरुड़गुफा, भीमशिला आदि स्थानोंमें होते हुए चॉदीके समान चमकीली बर्फके ऊपर होकर बद्ुधारा पहुँच गया | दस्तोंकी कमजोरीके कारण आशा तो नहीं थी कि उस चढ़ाईको पार कर सकूँगा, किन्तु प्रभुकी ऐसी ही इच्छा थी, जैसे-तैसे पहुँच गया। उस स्थानको देखकर हृदय नृत्य करने छगा । बात बढ़ जायगी, विषयान्तर भी हो जायगा, स्थान भी बहुत घिर जायगा और पाठक भी उकता जायँंगे इसलिये उस स्थान- की मनोहरता, अपनी निरबल्ता और वहाँकी प्राकृतिक छटाका चर्णन छोड़े ही देता हूँ | उन दोनों महापुरुषोंके विषयमें भी विस्तारके साथ वर्णन न करूँगा | पाठक इतना ही समझ हें कि वे सचमुचमें महापुरुष ही होंगे, जहाँ पश्चु-पक्षीकी तो बात ही क्या, पौधे भी बर्फके कारण नहीं जमते, वहाँ वे अठारह- बीस वर्षोंसे निरन्तर रहते हैं | केवल जाड़ोंमें चार महीनेके लिये




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