श्री श्री चैतन्य चरितावली खंड 1 | Shri Shri Chaitanya Charitawali Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना ও
भी भूख इतनी ख्गती कि सेर तीन पाव अन्न यदि मिरु जता
तो उसे प्रेमके साथपालेता! शरीरकी दशा विचित्रहीहो
गयी | बदरीनारायणजीके बड़े दखाजेपर जहाँ मैं रात्रिको पड़ा
रहता था वहीं एक साधुद्वारा माहछम हुआ कि यहाँसे छः-सात
मीक ओर ऊपर एक वघुधारा नामका स्थान है) वह स्थान भी
बढ़ा सुन्दर है और वहाँ दो बहुत पुराने महात्मा भी रहते हैं।
मैंने सोचा--जब यहॉतक आ गया हूँ, तब इस सुयोग-
'को हाथसे क्यों छोड़ूँ, मरूँ चाहे जौऊँ उन महापुरुषोंके दशेन
करने चाहिये। जानकी बाजी छगाकर नंगे ही पाँवोंसे वस्चुधारा-
को चल पड़ा । व्यासगुफा, गरुड़गुफा, भीमशिला आदि स्थानोंमें
होते हुए चॉदीके समान चमकीली बर्फके ऊपर होकर बद्ुधारा
पहुँच गया | दस्तोंकी कमजोरीके कारण आशा तो नहीं थी कि
उस चढ़ाईको पार कर सकूँगा, किन्तु प्रभुकी ऐसी ही इच्छा थी,
जैसे-तैसे पहुँच गया। उस स्थानको देखकर हृदय नृत्य करने छगा ।
बात बढ़ जायगी, विषयान्तर भी हो जायगा, स्थान भी बहुत
घिर जायगा और पाठक भी उकता जायँंगे इसलिये उस स्थान-
की मनोहरता, अपनी निरबल्ता और वहाँकी प्राकृतिक छटाका
चर्णन छोड़े ही देता हूँ | उन दोनों महापुरुषोंके विषयमें भी
विस्तारके साथ वर्णन न करूँगा | पाठक इतना ही समझ हें
कि वे सचमुचमें महापुरुष ही होंगे, जहाँ पश्चु-पक्षीकी तो बात
ही क्या, पौधे भी बर्फके कारण नहीं जमते, वहाँ वे अठारह-
बीस वर्षोंसे निरन्तर रहते हैं | केवल जाड़ोंमें चार महीनेके लिये
User Reviews
No Reviews | Add Yours...