गुजस्त लखनऊ | Gujasth Lukhnow

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Gujasth Lukhnow by मौलाना अब्दुल हलीम शरर - Maulana Abdul Halim Sharar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुज़श्तः लखनऊ. [ छेखांक--वोल्ावत आब्दुत हलीश शारंर ] फ़ेजाबादं की बुनियाद इसके तस्लीम करने में शायद किसी को उच्च न. होगा कि हिन्दोस्तान में , मशूरिकी तहजीव१ व. तमहूनरे का जो आखिरी नमूना नजर आया वह गुज़तः दरबार- अवध প্রা, अगले दौर की यादगार और, भी कई दरवार मौजद हैं; मगर जिस दरबार ; पर पुरानी तहजीव और अगली मुअआशरत* का खातिमः हो गयां वह यही दरबार था, ' जो बहुत ही आखिर में क्रायम हंभा ओर अजीवौ गरीव तरक्रिक्रयां दिखाकर वहत दही जल्द फना.हो गया 1. , लिहाज: . मृन्दरिज॑वाला उन्वान° के तहत मे हम उस महम ., ईरबार के मुख्तसर हालात और उसकी खुसू सियतों को बयान करना चाहते हैं । इसके तस्लीम करने मे भी शायद्‌ किसी को -उच्र न होगा -कि जिस खित्तए जमीन पर यह पहला दरवार क़्रायम हुआ उसक्रौ वक्नजुत्‌^ भौर अहम्मीयतः .हिन्दोस्तान ...के तमाम सूबों से बढ़ी हुई है। पुराने चुन्द्रवंशी) खानदान खुसूसन राजा रामचन्द्र जी के. आला, कारनामे और `. अदीमुन्नङ्गीर५.नामूर्यान इस दरजषए कमाल को पहुंची हुई हैं कि तारीख की ज़र्फ़ को तंग और महदूद देखकर इन्होंने मज़हबी तक़द्दुस८ का জালা पहिन लिया है, और आज -` हिन्दोस्तान का-शायद नादिर ही कोई ऐसा बदनसीब गाँव होगा जहाँ उनकी याद हर साल रामलीला के मज़ह॒वी नाटक के -ज़रीये से ताज़ा न कर ली जाती हो। लेकिन अवध के उस क्रदीमतरीन.९ देवताई दर॒वार के हालात और अयोध्या का उस अहंद का আহ্‌” व जलाल१ १ वाल्मीकी ने ऐसी मुअज्जिजनुमा * फ़साहत के साथं दिखाया कि वह॒ ` हरं अक्रीदते केश: की लौहँ-दिल पर. लिख गया.1 लिहाज: हमें इसके इआदे ४ की 1 छस्व और दीर्घ 'ए' व ओओ' की -मात्राओं के लिए क्रशः , 1, ग का प्रयोग है ।--जसे दीवाने ग्रालिब, दीवाने लोग! । . | लेखक को सुर्यवंश के स्थान पर चन्द्रवंश का धोखा हुआ है।.: ह । ` -सम्पादक १ शिष्टाचार ` ` .२ सभ्यतांः ` ` ३ सामाजिक -जीवन : ४ उपर्युक्त शीर्षक ५ प्रतिष्ठा ६ महत्ता ७ मिसाल की कमी, अनुपनेय :` ठ पवित्र पद ९ प्राचीनत्तम १० चंभव ११ प्रताप, तेज १२. गंरिमामय १३ धारक विश्वास १४ दोहराना ।




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