युरोप के झकोरे में | Europ Ke Jaker Main
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूलते-भटकते । ६
कारण वार चार करवटे यदलनी पड़तीं । जिप्सी युवक पास में ही वेहला
लिये बैठा था। अक्सर, जब कमी भी मन खराब होता, उसे कोई बढ़िया
गत बजाने के लिये कहता । वह मेरा रख पहचानने लगा था। उसीके
हिसाव से कोई वेदना अ्रथवा उत्साह भरा समीत चह मुके खना दिया `
करता शरोर मेरी तव्रीयत वंहल जाया करती । पर उस दिन उससे कुछ कहने
की इच्छा नहीं हो रही थी |
ग्रायारागदीं का जीवन होने के कारण अपने आप पर काफी कः
लाहट आ रही थी। मेरे मन में बार बार সাবা
आखिर इस तरह की जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है ! न घर न
द्वार,बात पूछने वाला भी कोई नहीं ; ओर सवेरा होते ही यहं सोचने
लगना कि आ्राज रोटी किस तरह मिल सकेगी, ओर शाम होते ही इसकी
चिन्ता करने लगना कि कहीं सोने का ठिकाना लगे ! भला इस तरह की
जिन्दगी मं भी कोई लुत्फ है ! इस त्तरह की जिन्दगी को तो नीरस,
आनन्द-रहित ओर सुर्दा-दिल ही मानना पड़ेगा ।?
मैं क्यों इस प्रकार का हूँ, ओर मेरा जीवन क्यो ऐसा वन गयी है---
ऐसे प्रश्न वार बार मन मे उठने लगे। पर इससे विभिन प्रकार का जीवन
किस प्रकार का हो और वह शुरू भी किस प्रकार किया जाय १
इस प्रश्न के उत्तर में एक बात जम कर बैठती जाती थी कि चाहे
जो भी हो, हवा के साथ वहते चलने से मेरे जीवन मे कोई सुधार नही हो
सकता ।
उस दिन तीसरे पहर जिप्सियों ने वहाँ से अपना डेरा उठाया |
उन्होंने अपना सब असबाव समेट, और वचो की गिनती कर वोकाई
कर ली । गाड़ी की सब खिड़कियाँ वन््द कर ली गयी । एक प्रोढ़ा জী
अपना लर्हेगा फैला कर कोचवान की जगह ला बैठी | एक हाथ से वह
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