प्रसादोत्तर कालीन नाटक | Prasadottar Kalin Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
147 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)লিখন मैं बंधा हुआ है কি জা ভা ভীত লা एचना हौत। है, वैसे हो उसके
विनाश का प्रक्रिया मां शर्म्म द्यी जातत है | बर्गसां के अनुसार यह प्रकाति
गतिमान, फिक्सनझोह হ্ আছিল লব ষ্র | पदाने की व्यर्वास्थत करने को
इच्छा एचनात्मक शक्ति कौ बाधघता है । वह ब्रद्ाण्ड कौ * रचनात्मक दुम न्ति
मानता है । जिशप तया सन होता है । व्याक नै यहं रचनात्मक प्रक्रिया
स्वय कमै पदाधे से অললস জন্ পতন रुप डत है । इस मण्ट्छ पट् व्यक्त कै
जीवन व्ल पृण विकास--अनैव अवरौधौं द्वापा -- आवश्यक सर्जनात्मक शॉकि
तक पहुंचने का प्रथास है ।
प्रकृति सदैव रचनात्मक कार्स कया करतो है । वह आवश्यकता सै कहाँ अधिक
उत्पादन करत है । इस अतिशय उत्पादन में से वह भरेष्ठ,यौग्य और गुणात्मक
कौ चुनकर उसका पौषण' करतों है, तथा शैण कौ नष्ट हो जाने के लिए छौह
देती है । प्रकृति का यह चुनाव सदव नष्ठ से সঙ্তলতে यौग्य से यौग्यतर को
और अग्रसर हौता है । हार्विन विव्यतवारदी জিরা কা प्रतिपादन करते हु
बताता हैं कि प्राकृतिक बुनाव ने मनुष्य के शारीरिक,बो द्विक, मौलिक तथा
सामाजिक विकास मैं यौगदान दिया है । वह आगे कहता है कि अन्य जानवरों
कम माति व्यक्ति भी संस्या मैं,जीवन मिर्वाह के साथनों को सोमा को अपैक्ष ग
बढ़ना चाहता है और यहा उसका जोवनं क अस्तित्व कै ष सवथ ` प्रारम्भ
हौता हैं | जेकिक विज्ञान इस सत्य कौ स्थापित करता है कि प्रकृति केवल
बातावरण हो नहां दैतो 8,अपितु वह व्यक्ति के आन्तरिक परिवतैन में भी
'विक क्हण्ट व्यक्ति के
१ एस०ह० फ़ापस्ट,जूनियर ; 'बैसिक टं।चुर्न्गस आफ़, ग्रैट फ़िलासफ :स ,प०४१२
२ ₹सम० चिनचैरस्टैः : *बाइजओर्लेजि रह इट्स शन ट् यैनकारण्ड ০ (४-१६
২ হল पबल ই “ভি ঈল-- ৭ ফাহভিলটে ৯০ ২9
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