खड़ी बाली के गौरव ग्रन्थ | Khadi Baali Ke Gaurav Granth

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Khadi Baali Ke Gaurav Granth by विश्वम्भर - Vishvambhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) हैं। 'अजातशत्र' सत्‌ और असत्‌ का संघष है । असत्‌ पहिले प्रबल होता, सत्‌ को आच्छादित करता दिखाई देता है; फिर थक- कर सतत के चरणों की शरण में आता है । सत्‌ असत्‌ को अपने वक्त से चिपटाता है ओर उसके शीश पर अभय का कर रखता है । संघप रुक जाता है, मंगल छाजाता है । नाटक के आरंभ में ही दंड देने को उद्यत अजात के दाथ को उसकी भगिनी पद्मा थामती है। वहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मानो पौरुष की अति को नारी की कोमलता रोकती है, मानो कररता का करुणा वजन करती है, मानो हिसा को च्रहिसा टाकती ह । समस्त नाटक इसी वजन से भरा हुआ है, इसी स्नेह से परिप्लाबित है । नाटक के असत्‌ पात्र अपराध करने पर तुले हुए हैं और धीरे धीरे सुधार को ओर जा रहे हैं । प्रारंभ में अपर!|ध करते हैं और अत में पश्चात्ताप करते हुए क्षमा मांग लेते हैं। दुष्ढता का अन्त किसी न किसी आघात स होता है । छुलना पति और सपत्नी के प्रति अपराध करती है, पर जब उसका पुत्र अजात बंदी होता है तब उसके हृदय में मातृप्रेम उमड़ता हे। यहद्द मातृ-प्रेम उसके हृदय की क्रग्ता को शांत करता है और डाह तथा अधिकार भावना की कीच को धो देता है| प्रसनजित और विरुद्धक मल्लिका का अनिष्ठ करते है--प्रसन इस लिए कि मल्लिका के पति सना- पति बंधुल से वह शंकित रहता है ओर विरुद्धक इसलिए कि मल्लिका का विवाह उसस न होकर बंधुल स क्यों हुआ | यहददी मल्लिका प्रतिशोध की भावना को दूर फेंककर घायल प्रसेन और विरुद्धक की संबा करती हुई उन्‍हें जीवन-दान देती है । उसका देवत्व इनकी कररता को भस्म कर डालता हँ। मागंधी का पतन




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