बंगाल के बाउल और उनका काव्य | Bangal Ke Bowl Aur Unka Kavya

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Bangal Ke Bowl Aur Unka Kavya  by श्री हरिश्चन्द्र - Shri Harishchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निरक्षर एक दल साधक शास्त्रभार मुक्त मानव धर्म की ही साधना करता चला आ रहा है। वे मुक्त पुरुष हैं इसलिए क्षमा का कोई ब घन नहीं म। 0 फिर भी समाज उनको क्यो छोड़ेगा ? तब उहोने कहा था हम लोग पागल हैं हमारी बात छोड़ दो। पागल का तो कोई दायित्व नहीं। बाउल का अर्थ वायुग्रस्त अर्थात पागल है । (उद्घ बगलार साहित्येर सक्षिप्त इतिहास भूदेव चौधुरी) (द्वितीय सस्करण १९६२) बाउल शास्त्रभार मुक्त जो मानव धर्म की साधना करते हैं. उसे खोजते फिरते हैं मानव देह में ही। देह की आदिम ओर चिरन्तन आकाक्षा को मन के सहन अनुराग मे रगकर उन्होने अनुभवमय मन के मानुष के मदिर मे एकान्त मन में प्रस्तुत किया है । बाउल का गान उसी बाउल साधना का अग है । बाउल शब्द व्यक्ति के लिए प्रयुक्त नहीं है प्रयुक्त हुआ है एक गोष्ठी के लिए, जिसके लिए बातुल विशेषण प्रयुक्त है उसकी प्रकृति का स्वरूप और वैशिष्ट्य ने के माध्यम क्षे क होती है। बाउल शब्द की उपत्ति और तापर्य के सदर्भमे उपे द्र नाथ भट टाचार्य ने विशद व्याख्या की है । दीर्ध बीस वर्षो तक बाउलों के साध रहकर उनमे दीक्षित होने का अभिनय करके उ होने बाउल सम्प्रदाय के गुप्त रहस्य को भी जानने की चेष्टा की ओर उस स दर्भ मे एक वृहद्‌ ग्र थ (लगभग १२ पृष्ठो का) लिखा । वैष्णव शैव कृष्णभक्ति भौ ५५१ हि दू तन स धन के सम्यक विकक्ष की चर्चा करते हए उ होने इस शब्द का अर्थं ओर सरोकार समञ्ञने की चेष्टा की है । उनके अनुसार ज्ञात होता है कि मध्ययुग के बगला साहित्य मे विशेष रूप मे कृष्णदास कविराज के चैतय चरितामृत ग्रथ में बाउल शब्द का काफी व्यवहार हुआ है। मालाधर वसु के श्रीकृष्ण विजय मे इस शब्द का व्यवहार दिखाई देता है। चैतन्य चरितामृत ग्रथ मे सात आठ बार इस शब्द का प्रयोग हुआ है । चण्डीदास भणिता युक्त वैष्णव सहजिया त व ओर साधना प्रणाली समवत रागामिका पद मे भी बाउल शब्द का व्यवहार दिखाई देता है । चण्डीदास के राधा कृष्ण प्रेम लीला का स्वरूप प्राकृत प्रेम लीला १७५ नोचे न्‍य ९तींथु।भेही भ१8 ।। चैतन्य प्रेम मे राधा की विहवलता त मयता उ मादना का दृष्टात पाया जाता है । चण्डीदास के प्रेम मे साहित्यरस के आस्वादन के साथ अध्या म रस॒ के आस्वादन का उत्कर्षः चैतन्य परवर्ती युग मे ही सम्भवं हुआ । यह उत्कर्ष स्वकूपगोस्वामी रूप गोस्वामी सनातन गोस्वामी जीव गोस्वामी आदि की रचना के बीच से गौडीय वैष्णव धर्म तत्व के रूप मे प्रतिष्ठित हुआ। सहज प्रेम साधना का बीज इन वैष्णव सहजिया धर्म में दिखाई देता है। उस युग मे ईश्वर प्रेम मे मतवाले और वाहय ससार के व्यापार मे उदासीन व्यक्ति को बाउल कहा जाता था। स्वय चैतन्यदेव ने भी खुद को बाउल कहा है । असित कमार वच्चोपाध्याय के अनुसार बातुल या व्याकल से बाउल शब्दं उत्म न हो सकता है । अर्थात ईश्वर प्रम मेँ जो पागल है अथवा आउल (अरबी) (या बाउर) हि दी जिसका अर्थ वायुरोग ग्रस्त है) से भी यह शब्द व्युपन हो सकता है। अरबी शब्द का अर्थ है ईएवर प्रेमी स्वाधीन चित्त जाति सम्प्रदाय चिनह्‌ ^ बगाल के बाउल और उनका काव्य भाग १




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