जिंदगी की राह में | Jindagi Ki Rah Mein

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jindagi Ki Rah Mein by बालशौरी रेड्डी -ED. BALSHOURI REDDY

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बालशौरी रेड्डी -ED. BALSHOURI REDDY

Add Infomation AboutED. BALSHOURI REDDY

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जिन्दगी की राह लेकिन वह उलभती ही गई, पर उसके हाथ कुछ नहीं लगा। इसी उधेडबुन में वह कब सो गई, पता नहीं। आख खुलते ही उसने देखा कि मद्रास स्टेशन पर गाड़ी आरा लगी है। 8 मद्रास सदूल स्टेशन पर सवत्र कोलाहल सुनाई दे रहा है ¦ यात्री गाडियो से उतरने ग्रौर चढने मे निमग्न है । सब श्रपने-्रपने . सामान उतारने के पहले एक बार बडी आतुरता के साथ जाच कर रहे है । प्लेटफार्मो पर कुली कतारो में खड़े गाडियो में सामान चढाने और उतारने मे मदद पहुचा रहे है । तो कही मजदूरी ठीक करने मे निमग्न है । सरला ने कुंली को को पुकारा । श्रपना होल्डाल ओर सूटकेस लाने का आदेश दे वह डिब्बे से नीचे उतरने लगी। इतने में दौडता हुआ सुरेश आ पहुचा । सरला को देखा, उसकी बाछे खिल गई। सहमी हुई आवाज में उसने कहा--“माफ कीजिएगा । मैने आपको बहुत कष्ट पहुचाया। दूसरे स्टेशन पर सामान ले जाना चाहता था, लेकिन भपकी भ्रा गई तो सो गया ।” “कोई बात नही, लेकिन यह तो बताइए, श्रापको कहा जाना है ? --सरला ने पूछा । “मुझे; मद्रास मेडिकल कॉलेज जाता है ।* ९७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now