जीवन झांकी | Jeevan Jhanki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नूतन वर्पोभिनन्दन पर कहने का मतलब यह कि अह्सा कभी निष्फल नदी होती । हाँ, अहिसक निष्फछ अवथ्य हो जाते है । विन्ठ मे उतनेभर से रुक नहीं जाता | “जरो तभी से सग्रेरा” के अनुसार में पिछली भूलो को सुधारकर भागे बढ़ना ही ठीक मानता हूँ । आदमी इसी तरह आगे चढ़ सकता है |” दोपहर में मुझे अस्पताल जाना पड़ा । चहं से लोटने पर एकाएक सुझे बुखार चढ़ आया | बुखार खूब जाडा देकर आया और घण्टेमर में १०४ डिग्री तक पहुँच गया । मुझे इससे उतनी परेगानी नह्दी होती थी, जितनी मेरी बीमारी देख च्चिन्ता में पड़ जानेवाले बापू को देखकर होती थी । देरावासी आपस से ही भयभीत पट्टनी साहब आये थे । उनसे बापू ने रोज आने के लिए कहा है, इसलिए वे आये । डेढ़ बजे भोजन के लिए गये । सियाम के थेनेट रोमन के साथ यहाँ फूट पड़नेवाली अमानुषी हिसा के विपय मे बातचीत छुई | उन्होंने बापू का अभिनन्दन भी किया कि “आपके परिश्रम से ही भारत आजाद हुआ है | उसका असर सभी देशों पर पड़ा । उससे सभीके हृदय मे आजाद होने की अभिलाषा जगनी ही चाहिए ।” बापू ने कहा : “लेकिन में तो इसका श्रेय ले ही नहीं सकता । में इस आजादी को आजादी मानता ही नहीं । यदि सुझे पहले से ही पता होता कि हमारी यह अद्धिसा निष्क्रिय प्रतिकार ( पैसिव रेजिस्टेन्स ) मात्र था, तो कदाचित्‌ ऐसा परिणाम रुक भी जाता । आज तो इस राजधानी के दाहर में भी लोग निश्चिन्त होकर घूम-फिर नहीं सकते । अपने भाइयो को देश-बन्धुओ का डर लगता है । तब से कैसे कह सकता हूँ कि दमारा देश आजादी की खुशी मना रहा है ? किसका दोष है, इससे मै आपको नहीं घसीटता । फिर भी यह निश्चित है कि यह सब विदेशी सत्ता का ही परिणाम है, यह कहे बगैर रह नहीं सकता ।” उनके जाने के बाद ज्ञानी करतारसिंहजी और सरदार दिली पसिंहजी आये | उन्होने पंजाब और कब्मीर की खबरे सुनायी । अभी तो राख से टंकी आग-सी लग रही है । कब, कहाँ यह ज्वाछासुखी फूट पड़ेगा, कहा नहीं जा सकता । प्रार्थनानसभा मे बापू ने सर्वप्रथम ईसाई भाइयों का नववर्षाशिनन्दन




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