त्रिपुरी का इतिहस | Tripuri Ka Itihas

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Tripuri Ka Itihas by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(2 ) उपल प्रयत्न खम वीर तनय. नरसिंह देव सुर गुरु सेवी ॥६२॥ जयसिंह भ्रात जिसके विजयो, सौमित्रि राम सम प्रोतिवान 1 शौर्योज्वल सव भूपति जिनकी-सेवां रत क्रते कीतिंगान ॥१३॥ गुजर तन जजेर ज्ञीण तुरुक-भागे त्रासित हो तृपति शेप । भूत्ते क तल निज काम-फेलि, जव छुना विजय राञ्याभिपेक ॥१४। इन्द्रमभा हिमहार गुच्छ कौ, निन्दित करती कीतिं लता) चन्दन सम शीत्तल संखोग मे, हई चियोगिनि दूर गता ॥१५॥ सिहासन-मोलि-रत्न-मखि जो, विक्रमादित्य प्रख्यात नाम | निश्वल चिन स्वगेवाच्छनायुत, निज मुजवल जीता धरा धाम ॥१॥ ( शिला श्रौर ताग्रलेखो के आधार पर )




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