जवाहर विचारसार | Jawahar - Vicharsar

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Jawahar - Vicharsar by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जवाहर-विचारसार | [ £ नना ही उत्तम अर्थ है। यह जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य है। जीवन की चरम सफलता इती में है। जे। इन्द्रियों के मोह में पड़ जाता है वह आत्मा के भूछ जाता है। वह उत्तम अर्य को नद्ट करत है। ऐसे व्यक्ति के सिंए कद जतत( है--गये कमाने और কী आये मूल पँजी भी। करने गये सीधा और हे। गया उल्टा |! ऐसा करना विपरीत कृत्य है| विपरीत कृत्य करना उत्तमार्थ को नष्ट करना है । आध्यात्मिक शुक्ति आध्यात्मिकता कोई साधारण वस्तु नहीं है। गीता में आध्यात्मिकता को खव विद्याओं में प्रथम स्थान दिया गया है । जहाँ दूसरे के कल्याण के लिए छोदी-सी बस्तु का भी त्याग नहीं किया ज्ञा सकदा জনা লা आध्यात्मिकता केसे निभ सकती हैः? जहाँ लोभ दशा है वहाँ आध्यात्मिकता को स्थान नहीं सिल सकता | आध्यात्मिकता का स्थान चहीं है जदों परकल्याण के खिए प्राणों का उत्सर्ग करने में भी आनाकानी नहीं हे।ती । राजा मेघरथ ने कबूतर की रक्षा के लिए शरीर-त्याग किया था। क्या उसमें आध्यात्मि- कता नहीं थी? निस्तंदेह सेध्रस्थ में आध्यात्मिकता थ्री ओर इसी कारण उसने पर- कल्याण के लिए शरीर का त्याग किया था। डसे भलीमॉति ज्ञात था कि परोपकार के लिए आत्म-समपेण करना ही सच्ची आध्यात्मिकता है। इससे यह स्पष्ट हे कि ज्ञो अध्यात्म-निष्ठ हेत्ता है वह दूसरे के हित में अपना हित मानता है । आत्मा का अनेकत्व- कुछ विचारकें का ऐसा मन्तच्य है कि आत्मा एक ही है। एक ही आत्मा स्ेत्न व्याप्त है। जैसे पानी से भरे हुए हजारों घड़ों में एक ही चन्द्रमा दष्टिगोचर होता है इसी प्रकार विभिन्न शरीरें में एक ही आत्मा प्रतिविमस्थित हो रह! है। यह विचार चास्तच में “ यथार्थ नहीं है। उदाहरण में बढ वतलाया गय। है. कि एक ही चन्द्रमा हजारें- घड़ों में प्रतिबिम्बित होता है. सो तो ठीक है । किन्तु चन्द्रमा यदि पूर्णिमा का होगा तो सभी घड़ों में पूणिमा फा ही दिखाई देगा। अगर अष्टमी का हुआ तो सभी में अष्टमी - का हष्टिगोचर हेगा। एक ही चन्द्रमा कियी घर में पूणिमा का, किसी में अएसी का और किसी में द्वितीया का दिखाई नहीं दे सकता। इसी प्रकार अगर एक ही आत्मा सर्चच व्याप्त है तो सवेत्र एऋरूपता दृष्टिगोचर हनी चाहिए। मगर ऐसा नहीं होत1। हमें सर्वत्र विभिन्न-रूपता ही दीख पड़ती है। कोई वुद्धिमान्‌ डता हे, को$ निद्धि, कोई दी + है तो कोई खुखी है। इस प्रक।र विचार कसे से आत्मा का श्यनेकन्व प्रमा- त होता आत्मा के गुण आत्माययपि एक देह का परित्याग करके दसरे देह में ज्ञाता है, एक योति से दखरी योनि मे गमन करता है, तथापि उसका सूल स्वरूप नहीं वदलता, उसके परदेशां की संख्या सदेव समान रहती है। देह वदल जाती है पर आत्मा का स्त्रूप नहीं बदलता ! शात्मा




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