व्रत तिथि निर्णय | Vrat Tithi Nirnay

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Vrat Tithi Nirnay by डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घततिथिनिणय १५ ४१।४६५ अनकिंत पूर्वाषाढा, अतः ४१।४५ + २०।३० रप्॑चाद्ध अंकित = ६२।१५ मूर्वापाढाका कुक मान हुआ ; किन्तु वुधवारको २० घटी ३० पक ही पूर्वाषाढा हे] इसके पश्चात्‌ उत्तयघादाका आरम्भ हो जाता है । अतः बुधवार को (६००--२०।३०) = ३९३० उत्तराघाढ़ा है। बुधवारको अवण नहीं आ सकेगा, अतः श्रवणकी प्रथम चार घटियों हमें नही मिलेगी। ऐसी स्थितिमे अभिजित्‌ नक्षत्र, जो कि उत्तराघादा और श्रवणके संयोगसे निष्णात होता है, गुस्वारकों मिलेगा । इस दिन द्वितीया तिथि हो जायगी, ऐसी खिंतिमे बीर- शासन जयन्ती गुरुवार द्वित्तीयाको दी मनानी होगी । निष्कपं यह दै कि बीर शासन जयन्ती अभिजित्‌ नश्षत्रके होनेपर ही सम्पन्न करना अधिक उचित है। यह काल सध्यममानसे प्रायः सर्वदा प्रातः ८-९ बजेके मध्यमे आयगा | अतएवं इसदिन मगवान्‌ महावीर स्वामीका पूजन करना, उपवास करना तथा भगवानके उपदेशोंके प्रचारक छिए समा आदिका आयोजन करना चाहिए। साधारणतया जिसदिन प्रतिपदा पश्चागमे उदयका्लमे ही रहती दै उस दिन प्रायः अभिजित्‌ नक्षत्र भी आ ही जाता दै । अतः यहो प्रतिषदाका मान उदयक्ालीन ही ग्रहण करना चाहिए। दो प्रतिपदा होनेपर जो प्रतिपदा उदयकाल्मे १० घरी या इससे अधिक हो; उसीमे यह दिन पडता है । अतएव अभिजित्‌ मक्ष्रके आनेपर ही प्रतिपदाको हण करना शाखसम्मत है ओर यदही धर्मतीर्थके प्रवर्तनका काल है | भगवान्‌ पार्वनाथक्रा निर्वाण-दिवस प्रायः सर्व॑ मनाया जाता है । भगवान्‌ पा्वनाथके नि्वाणकै सम्बन्धे बताया गया दै-- सिदसत्तमीपदोसे सावणमासम्मि जम्मणक्खन्ते । सम्देदे पासजिणों छत्तीसझुदों गठो सोक्खं ॥ -+तिलोयपण्णत्ती ४।१२०७ अर्थात्‌- पार््वनाथ जिनेन्द्र श्रावण मासमें शुक्र पक्की सप्तमीको भगवान्‌ पार््चनाथ- का निर्वाण-द्विस




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