वस्तुविज्ञानसार | Vastuvigyansar

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Vastuvigyansar by श्री कानजी स्वामी - Shree Kanji Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¦ पनन्त परपाध {५ प्रम पर्यायदव्य्म से भरती पर पदार्थ में से नहीं, तथा . एक पर्याय में से दूसरी पयाय॑ प्रयट नहीं होगी इसविए अपनी पर्याय के िण प्न्य क ओर्‌ धयया पर्याय के! देखना नहीं रहा किन्तु मात লানা : শেড वी ही देसना रहा। गिसडी एसी दशा हेाजाती है, समनना चाहिये रि उपने खन क ज्ञान के भनुसार क्रमयद्ध पर्याय का निणय वर लिया है। / प्रश्न--स्वक्ष भगवान ने दवा हा तमी ते भात्मा वी रुचि होती दैन ! उत्तर--द सिसो निश्चय क्रिया रि सतति भगान सम धद जानते ই £ विने सॉद्ञ भगपान की ज्ञान शक्ति वा भपनी पर्याय में निश्चित परिमा है उसकी पर्याय ससार से ओर राग से हटकर अपर स्वभाय की भार लग मई है तभी पढ़ सवकज्ञ का निरश्य करता है । तिसती पयाय कषान स्याम घोर हाग्‌ হু ওক পাল্লা পরী হী যি हानी दे । जिसने यद यथाधैनया निधय श्रिया रि ' म्रदा! वेयली भगवान तीन काल और জীন ব ঈ হানা &, वे वपन ज्ञान से सब पृं जानत दे निन्तु प्रिती करा इद्ध नहीं वरते ? उसने झरने झात्मा का जाता स्वभार व रूप में मान जिया धर उसकी तीन काल झोर तीए लोक के समस्त पदार्थों वी कत्य षधि दूर दा गई दै याद्‌ धभिपराय शी भये मेः षद सवदा दा गया दे । एसा स्वभा का घनन्त प्रसाद करमरद्ध पर्याय डी श्रद्धा में झाता है । कमबद्ध पर्याय ॥। भ्रद्धा नियताद না ই, কিন্তু অল্যই पध पाद है । % प्रस्तुत वया कमै एक के बाद दूसरी जय ४“स्था होटी हैं उत्था कता स्वयं ददी द्ग हाता दै, चिन्तुम उत्पा क्ता नहीं हु झ्तोर न मेरी प्रव्॑धा छा काई भन्‍द कला दे ! प्रिवी लिव कारण द सगर्रेप नहीं छते । य अद्मर निमित्त घौर रण््प वे रनम धारी मत्र उनी मव्य र्द जानी ই ঘর अवस्था शा स्वप दी तनी ‰, राग का मद्री, भर समा ঘ্ক্কা ফী লানলা ই মন অবলা হী হান কা




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