श्री न्याय समुच्चय सार | Sri Nyan Samuchchay Saar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
445
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट्वितीय आवृत्ति का निवेदन..............
॥ ॐ ॥
“वन्दे श्री गुरु तारणम्”
श्रमण संस्कृति में भगवान महावीर की आचार्य परम्परा के अन्तर्गत श्री कुन्द-कृन्दाचार्य, श्री
समंत भद्राचार्य, श्री अमृतचन्द्राचार्य, श्री आचार्य योगीन्दु देव, श्री उमा-स्वामी आदि-आदि प्रभृति
आचार्यो एवं जिनवाणी के आराध्यों की श्रंखला मे श्रीमद् जिन तारणतरण स्वामी भी १६वीं शताब्दी
मे मध्यप्रदेश की बुन्देलखंड भूमि पर जन्मे थे ।
यह युग लोधी सल्तनत का युग था ओर उस समय देश मे भीषण अराजकता, अशांति, हिसा
का तांडव नृत्य तथा धर्म के नाम पर पाखंड एवं क्रियाकांड का बोलबाला था । श्री जिन तारणतरण
स्वामी ने तत्कालीन परिस्थितियों मे आत्मोत्नति ओर धर्म के उत्थान के लिए जिनवाणी की आराधना
कर द्रारा तत्वज्ञान के अभ्यास पर विशेष बल दिया तथा जिनवाणी की उपासना को ही मुख्य आधार
बनाया । यह एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था ।
सांसारिक क्रियाकलापों से टूर रहते हुए एवं द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव को ध्यान में रखते हुए,
एक दूरदर्शी विचारक होने के नाते उन्होंने धर्म एवं संस्कृति की रक्षा हेतु तत्व के प्रचार पर ही विशेष
बल दिया। वे धर्मोपदेशक तो थे ही, साथ ही आत्मा में रमण करने वाले युग पुरुष भी थे । वे धर्म,
समाज एवं संस्कृति के उन्नायक, प्रेरणात्नोत, विचारक, “स्वपर कल्याणकर्ता” संत और आध्यात्मिक
क्रांतिकारी महापुरुष थे ।
श्री जिन तारणतरण स्वामी ने १४ आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना की थी- श्री पंडित पूजा, श्री
माला रोहण, श्री कमल बत्तीसी, श्री श्रावकाचार, श्री ज्ञान (न्यान) समुच्चयसार, श्री उपदेश शुद्धसार,
श्री ममलपाहुड, श्री सिद्ध स्वभाव, श्री शून्य स्वभाव, श्री छद्मस्थवाणी, श्री खातिका विशेष, श्री त्रिभंगीसार,
श्री चौबीस ठाना, श्री नाममाला ।
ये सभी ग्रन्थ तत्कालीन भाषा शैली [संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी आदि मिश्रित शेली] मे लिखे
गये है । ये सभी ग्रंथ अध्यात्म के प्रेरक, जैनागम के प्रतीक तथा निश्चय एवं व्यवहार के कथन को
लिए हुए हैं।
उपरोक्त १४ ग्रंथों में से ९ ग्रंथों, श्री ज्ञान (न््यान) समुच्चयसार, श्री उपदेश शुद्धसार, श्री ममलपाहुड,
(भाग १, २, ३) श्री पंडित पूजा, श्री माला रोहण, श्री कमल बत्तीसी, श्री श्रावकाचार, श्री चौबीस ठाना,
श्री त्रिभंगीसार की भाषा टीकायें जैन दर्शन. के प्रकाण्ड विद्वान मनीषी, क्रांतिकारी युग पुरुष, धर्म
दिवाकर, परम श्रद्धेय स्व. ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी ने सन् १९३५ के करीब सागर चातुर्मास के प्रवास
काल में आरम्भ करके एक के बाद एक इस तरह ९ ग्रन्थों पर सरल सुबोध भाषा में टीकायें करके
एवं आध्यात्मिक ज्ञान का रहस्योद्घाटन करके और इन ग्रंथों को बोधगम्य करके संपूर्ण जैन समाज
पर एक महान उपकार किया है। ये सभी ग्रन्थ प्रचलित हिन्दी भाषा में प्रकाशित भी किये गये थे ।
13
User Reviews
No Reviews | Add Yours...