जैन योग | Jain Yog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य महाप्रज्ञ - Acharya Mahapragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)অমল की प्रज्ञा और बाधाए, समता की निष्पत्ति, समत्व
का जागरण . धर्मध्यान की स्थिरता, समता का
चरमबिन्दु : वीतरगता
अप्रमाद, वीतराग ओर केवली १११
अप्रमाद, वीतरागता, कैवल्य आत्मोपलब्धि
३ पद्धति ओर उपलब्धि ११३
अंतर्यात्रा _ ११५
अध्यात्म है अतयत्र, अध्यात्म का सोपान अनुभव,
अनुभव प्रत्यक्ष तर्क परोक्ष, उपदेश परोक्षद्रष्टा के लिए,
अमृत का इरना, प्राण चिकित्सा, निवृत्ति प्रवृत्ति,
अध्यात्म की ज्येति कर्मकाड की राख
तपोयोग १२२
सवरयोग तपोयोग, तपोयोग की साधना के सूत्र, चित्त
के तीन रूप
प्रेक्षा ध्यान १२६
समता, श्वास-प्रेक्षा, अनिमेष-प्रेक्षा, शरीर-प्रेक्षा, वर्तमान
क्षण की प्रेक्षा, एकाग्रता, सयम
भावना योग १३६
आत्म-सम्मोहन की प्रक्रिया
भावधारा और आभामडल १३८
चैतन्य लेश्या पुद्गल लेश्या, तैजसं शरीर है शक्ति केन्द्र,
लेश्या का वर्मीकरण, लेश्या ओर ध्यान, आभामडल ओर
वर्ण, ध्यान ओर लेश्या का सबध, लेश्या और चैतन्य-केन्द्र,
वैज्ञानिक निष्कर्ष, लेश्या और मानसिक चिकित्सा, लेश्या
और ज्ञान
चैतन्य-केद्र १५०
चैतन्य-केद्र क्या है ?, समूचा शरीर ज्ञान का साधक,
अतीद्धिय ज्ञान की प्राप्ति और अभिव्यक्ति, प्रेक्षा ध्यान
की प्रक्रिया, प्रेक्षा ध्यान की निष्पत्ति, केन्द्र और सवादी
केद्, चैतन्य-केन्द्र जागृति कब, कैसे ?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...