हरिवंस पुराण भाग 3 | Harivansh Puranu Vol 3 (1941) Ac 6726

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Harivansh Puranu Vol 3 (1941) Ac 6726 by पुष्पदन्त - Pushpadant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ महापुराण हुए थे! । इसके पित्राय वे राजके दानमत्री मी येः । इतिहासमे कृष्ण तृतीयके एक मंत्री नारायणका नाम तो मिलता है, जो कि बहुत ही बिद्वान्‌ और राजनीतिज्ञ था परन्तु भरत महामात्यका अब तक किसीको पता नहीं। क्योकि पुष्पदन्तका साहित्य इतिहासङ्ञोके पास तक पहुँचा ही नही। पुष्पदन्तने अपने महापुराणमे भग्तका जो बहुत-सा परिचय दिया है, उसके নিনাষ उन्हंने उसकी अधिकाश सन्धियोके आरम्ममे कुछ ग्रशस्तिपथ भी पीछेसे जोड़े हे जिनकी ख्या ४८ है । उनमेसे ह ( ५, ६, १६, ३०, २५, ४८) तो शुद्ध प्राकृतके है और शेष संस्क्ृतके | इन ०८ पद्मोमे भरतका जो गरुण-कीर्तन किया गया है, उससे भी उनके जीवनपर विस्तृत प्रकाश पडता है । हो सकता है कि उक्तं साग गुणानुबाद कवित्वपूण होनेके कारण अतिशयोक्तिमय हो, परन्तु कविके खमावको देखते हए उसमे सचाई भी कम नहीं जान पड़ती | भरत सारी कलाओं और विद्याओमे कुशल थे, प्राकृत कवियोकी रचनाओपर मुग्ध थे, उन्होने सरस्वती सुरभिका दूध पिया था। लक्ष्मी उन्हे चाहती थी । मे सत्यप्रतिङ्ग ओर निर्मत्सर थे। युद्धोका बोझ ढोते ढोते उनके कन्घे घिस गये थे,” अर्थात्‌ उन्होने अनेक लड़ाइयाँ छड़ी थीं। बहुत ही मनोहर, कवियोके लिए कामबेनु, दौन-दुश्लियोकी आशा पूरी करनेवाले, चारो ओर प्रसिद्ध, परख्रीपरहमुख, सचरित्र, उन्नतमति और सुजनोके उद्भारक थे । उनका रंग सॉवला था, हाथीकी सूंडके समान उनकी भुजाये थीं, अज्ज सुडौल थे, १ सोय भ्रीभरतः कलंकरद्ितः कान्तः सुद्गत्त: शुतिः सज्ज्योतिर्मणिराकरों प्लुत इवानध्यों गुणैर्मासते । बंशों येन पविन्नतामिह् महामात्याहयय. प्रातवान्‌ श्रीमद्रछमराजशक्तिकटके यश्चाभवन्नायकः ॥ 9० को ० ४६ २ हं हो भद्र भरचण्डावनिपतिमवने त्यागसख्यानकत्तौ कोऽयं श्यामः प्रधानः प्रवर्करिकसकासराहुः प्रसन्नः । घन्यः प्रालिथपिष्टोपमधवल्यश्ो घोतधात्रीतलन्तः ख्यातो बन्धुः कवीना भरत दति कथ पान्थ जानाति नो तवम्‌ ॥१५ ३ देखो सालोटगीका शिलालेख, इं० ए० जिल्द ४, प्० ६० ) ४ बम्बईके सरस्वती-मव्रनभ महापुराणकी जे। बहुत द्वी अश्द्ध प्रति है उसकी ४२ वीं सन्धिके बाद एक ^ हरति मनसे मोहं ` आदि अश्युदध प्य अधिक दिया हू है । जान पडता है अन्य प्रतिमे शायद इस तरहके ओर भी कुछ पद्म होंगे | कह . „> । , 1 | भं णीसेसकलाविण्णाणकुसल | पाययकदकव्वरसावउद्ध संपीयसरासइसुरहिदुद्ध ॥ कमलच्छु अमच्छद सच्चसंधु रणभरधुरघरणुग्घुदखंघु । ६ सबिलासविलासिणिहियहथेणु सुपसिद्धमहाकइकामधेणु । काणीणदीणपरिपूरियासु जसपसरपसाहईियदसदिसासु ॥ पररमागिपरम्मुहु सुदसील डण्णयमइ सुयणुद्धरणलीरं |




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