श्री पट्टावालियाँ - प्रथम परिच्छेद | Shree Pattawali - Pragsangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
548
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम-परिच्छेद ] [ €
पर्यायवाला अधिक माना और एक युगप्रधान के युगप्रवानत्व के ४१ वर्षों
के स्थान पर ३६ व्रषंहीमाने। इस प्रकार उन्होने श्रपनी गणनामे १३ दषं
बढा दिये थे जिसका माधुरी वाचनाके ग्रनुयायियो को पता तक नही था,
दाक्षिणात्य सघ दूर निकलने के वाद केवल युगप्रचानत्व काल की ही गणना
करता रहा, तव उत्तरीय सघ युगप्रधानत्व के साथ राजत्वकाल काभी
परिगणन करता रहा । इस कारण वह ग्रपनी गणना को प्रामाःखाक्र मनवाने
का आग्रही था, परन्तु दूसरी पार्टी ने अपनी गणना को गलत मानने से साफ
इन्कार कर दिया । फलस्वरूप कालनिर्देश विपयक दोनो की मान्यता के _
सूचन मूल सूत्र भे करने पडे | माथुरी वाचना को प्रथम से ही मुख्यता दे दी
थी । इसलिए प्रथम “माथुरी वाचना” का मन्तव्य सूचित किया गया श्रौर
बाद में वालभी वाचना का ।
कल्प-स्थ तिरावली में आये यशोभद्र तक की स्थविरावली पाटलीपुत्र
मे होने वाली वाचना के पहले वी है, तब उप्तके बाद की सप्त तथा
विस्तृत दोनो स्थविरावलियां, जिनकी समाप्ति क्रमश. “श्रार्य तापस” श्रौर
“आये फल्पुमित्र” तक जाकर होती है, ये दोनो स्थविरावलिया दूसरी
वाचना के समय यशोमद्रसुरि पर्यन्त की मूलस्यविरावली के साथ जोड़ी गईं
थी, और आये तापस तथा श्रायं फतगुमित्र के बादकौी स्थविरो की नामा-
वली श्राचाय श्री देवद्धिगरि क्षमाश्रमण के समय में होने वाले भागमलेखन
के समय पूर्वोक्त सन्धित पट्टावली के अ्रन्त मे जोड़ दी गई हैं ।
पहली वाचना हुईं तब भूतकालीन स्थविरो की नामावली सूत्र के साथ
जोड़ी गई। दूसरी वाचना के प्रसग॒ पर उसके पूर्ववर्ती स्थविरों की नामावली
पूवं के साय श्रनुसन्धित कर दी गई, श्रौर देवद्धिगसि क्षमाश्रमणा के समय में
द्वितीय वाचना के परवर्ती स्थविरो की नामावली यथाक्रम व्यवस्थित करके
श्रन्तिम वाचन के समय पूतन स्थविरावली के साथ जोड़ दी गई है।
॥/
User Reviews
No Reviews | Add Yours...