धर्म - प्रसंग में स्वामी शिवानन्द | Dharm - Prasang Men Swami Shiwanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म-प्रधश में स्वामी शिवानरद ५ गो समय के साय व्हा हो रहार, तथा अगे भौरमौ रोगा १ तो फिर अब वह शर्वित किस प्रकार अक्षुण्ण बनी रह सकेगी ? किस प्रकार उस शक्ति-प्रवाह्‌ को दीर्घं काट तक जगत्‌ के कल्याणार्थ अविच्छिन्न ओर जब्याहत रखा जाय ? महाराज --* देखो, इस नरबर जगत्‌ में कोई भी वस्तु चिरस्थायी नहीं है कोई भी शति चिरकाहू तक समान रूप से कार्म नहीं किए जा सकती । शक्ति की गति कैसी हूँ, जानते हो ?-- ठीक ५४४४७ {तरग) के समनि 1 १४०४४४-॥४७ 7100100 (तरंगायित गत्ति) में झकित खेल करती टं) कभी-कभी बड़े बैग से बहुत ऊपर उठती हैँ, और कभी मन्द यति से भीचे की ओर जाती हैं । यही विरकाछ से होता रहा हैं। और यह जो आज म॑न्द गति-सी दिखाई देती है, वही भविष्य में वेगमथी यति कौ सूचना दे रही हूँ । अब किस प्रकार इस रावित को अव्याहृत रखा जाय, यह मनुष्य भला कंसे जानेगा ? इसे तो केवल माँ ही जानतो हैं । जिन महाशक्ति मे से इस जगत्‌ मे शक्तिकां उद्भव हो रहा हैं, एकमात्र वे ही जानती है कि किस तरह इस शक्ति की रक्षा की जाय । जो आयाशक्ति महामाया जगत्‌ के कल्याणार्थ अपनी शक्ति को अभिव्यक्ति करती है, वे ही जानतो हैँ कि किस प्रकार और कब तक वै उस शक्ति को वेग्मयी बनाए रखेंगी । हम छोगों के लिए उनके ऊपर पूर्णतया निर्भर रहने के अतिरिक्त ओर कोई उपाय हैं ही नहीं | ” भक्त -- हम छोगों ने ठाकुर भीरामकृष्ण देव को जीवन का आदर्श बनाया है। उन्ही के भावत्र में अपने जीवन को गढ़ने की चेष्टा भी करते हूँ । इस विपय में जापकी सहायता की याचना




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