धर्म - प्रसंग में स्वामी शिवानन्द | Dharm - Prasang Men Swami Shiwanand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म-प्रधश में स्वामी शिवानरद ५
गो समय के साय व्हा हो रहार, तथा अगे भौरमौ
रोगा १ तो फिर अब वह शर्वित किस प्रकार अक्षुण्ण बनी रह
सकेगी ? किस प्रकार उस शक्ति-प्रवाह् को दीर्घं काट तक
जगत् के कल्याणार्थ अविच्छिन्न ओर जब्याहत रखा जाय ?
महाराज --* देखो, इस नरबर जगत् में कोई भी वस्तु
चिरस्थायी नहीं है कोई भी शति चिरकाहू तक समान रूप
से कार्म नहीं किए जा सकती । शक्ति की गति कैसी हूँ, जानते
हो ?-- ठीक ५४४४७ {तरग) के समनि 1 १४०४४४-॥४७ 7100100
(तरंगायित गत्ति) में झकित खेल करती टं) कभी-कभी बड़े
बैग से बहुत ऊपर उठती हैँ, और कभी मन्द यति से भीचे की
ओर जाती हैं । यही विरकाछ से होता रहा हैं। और यह जो
आज म॑न्द गति-सी दिखाई देती है, वही भविष्य में वेगमथी यति
कौ सूचना दे रही हूँ । अब किस प्रकार इस रावित को अव्याहृत
रखा जाय, यह मनुष्य भला कंसे जानेगा ? इसे तो केवल माँ
ही जानतो हैं । जिन महाशक्ति मे से इस जगत् मे शक्तिकां
उद्भव हो रहा हैं, एकमात्र वे ही जानती है कि किस तरह इस
शक्ति की रक्षा की जाय । जो आयाशक्ति महामाया जगत् के
कल्याणार्थ अपनी शक्ति को अभिव्यक्ति करती है, वे ही जानतो
हैँ कि किस प्रकार और कब तक वै उस शक्ति को वेग्मयी
बनाए रखेंगी । हम छोगों के लिए उनके ऊपर पूर्णतया निर्भर
रहने के अतिरिक्त ओर कोई उपाय हैं ही नहीं | ”
भक्त -- हम छोगों ने ठाकुर भीरामकृष्ण देव को जीवन
का आदर्श बनाया है। उन्ही के भावत्र में अपने जीवन को गढ़ने की
चेष्टा भी करते हूँ । इस विपय में जापकी सहायता की याचना
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