विष्णुपुराण का भारत | Visnupurana Ka Bharata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चारागण हैं। इस पुराण मे विष्णु को परय तेजस्वी, अजर यच्स्त्य, व्यापक, नित्य, कारणद्वीन एव सम्पूर्ण विश्व में व्यापक बताया ই । যা तदेव भगवद्वाच्यं स्वरूपं परमात्मनः। वाचकों भगवच्छब्दस्वस्यायस्याक्षयात्मन- ॥ -पिष्णुुराण ६।५।६६ सर्पात्‌ परमस्माकं स्वरूप “मगवद्‌, शब्द वाच्य है और भगवत्‌ शब्द हो उव भा एवं मसग स्वल्प का वाचक है । वास्तव मे देशवयं षभ, यश, श्री, ज्ञान और वेराग्य गुणों से युक्त होने के कारण विष्णु, भगवान्‌ कहे जाते हैं। विष्युपुराण में भगवान्‌ शब्द का निवंचत प्रस्तुत करते हुए लिखा है ड्लिज्ो समस्त प्राणियों की उपत्ति और ना, धाना मौर भना, विद्या नौर यवि को जतिता है, वही भगवान्‌ है-- उतपि प्रलयं चैय भूतानामगतिं गतिम्‌ । वेत्ति विद्यामविया च स वाच्यो भगवानितति]] विष्णुपुराण হও विष्णु सबके आत्मरूप में एवं सकल भूतो में विद्यमान हैं. इसोलिए उन्हें चाक्ुदेव कहा जाता है । जो जो भूताधिपति पहले हुए हैं. और जो आगे होगे, वे भमी सर्वभूत भगवान्‌ विष्णु के अश हैं। विष्णु के अधान चार अश हैं। एक अद्य से वे अव्यक्तब्प ब्रह्मा हौते हैं, दूसरे अश से मरीचि आदि प्रजापति हते हैं, तीसरा भश काल है और चौथा सम्पूर्ण प्राणी । इस प्रकार चार तरह से ये सृष्टि में स्थित हैं | शक्ति के तथा सृष्टि के इन चारो आदि कारणों के प्रतीक भगवान विष्णु चार म्रुजाबाले हैं। मणि-माणिक्य विभूषित्त, वैजयस्तीमाला से युक्त, उपरो बां हाथमे धंख, ऊपरी दायें हाथ में चक्र, नोये के না हाथ प्र कमछ तथा नीचे के दायें हाथ में गदाधारी भगवान्‌ विष्णु हैं। विष्णुपुराण मे अताया है कि इस जगदू की निलेंग तथा निगुंण और निर्मल आत्मा को अर्थात्‌ १ तेश्वय॑स्य समग्रस्य धर्मेस्थ यशसश्थियः । शानवैराग्ययोइचैंद पण्णा भग इतीरणा ॥ दतन्ति तत्र मृतानि भूतात्मन्यखिलात्मति 1 सच मूतेप्वप्रेपेपु बकाराय॑स्वतोड्व्यय- ॥ विष्णुपुराण ६1४1७४-७५ २ सर्वाणि तर भूतानि वन्ति परमात्मतिं ॥ मृतुः च स सर्वात्मा वाधुदेवस्ततः स्ृत ॥--विष्णुुराण ६।५।६० [{ ज ]




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