आधुनिक व्यापार | Adhunik Vyapar

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Adhunik Vyapar by कान्तानाथ गर्ग - Kantanath Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारम्भिक ছু मेज़ है; अन्न से अधिक उपयोगी वस्तु उसी से बनी हुईं रोटो है; लोहे से श्रधिक उपयोगी वस्तु उसी से वने हुए औज़ार हैं; रुई से अधिक उपयोगी वस्तु यूत है और घूत ते अधिक उपयोगी वस्तु कपड़ा है। जब किसी वस्तु का उपयोग किया जाता है तब उसका रूप बदलने से उपयोगिता की कमी -मी हो जाती है। अ्रतः, वे कार्य घन की उत्पत्ति के नहीं माने जाते । घन की उसत्तिमे तोवेही कायं सम्मिलित किये जाते हैं जिनके द्वारा किसी वध्तु की उपयोगिता में वृद्धि होती ই। | (र) स्थान बदल करके उपयोगिता वृद्धि करना--जज्ञल में कटी हुईं लकडी उपयोगी है, खेत में पेदा हुआ अन्न उपयोगी है, खदान से निकला हुआ खनिज पदार्थ उपयोगी है, नदी और समुद्र से पकडी हुई मछुलियाँ उपयोगी हैं, बढ़ई की बनाई हुई कुर्सियाँ और मेज उपयोगी हैं श्रौर कारख़ानों में वना हुआ कपड़ा उपयोगी है, किन्तु इन सबको ओर अधिक उपयोगी बनाने के लिये इनका स्थान परिवर्तन श्रावश्यक है । जङ्गल मे लकड़ी उतनी उपयोगी नदीं है जितनी वस्ती मे; खेत मे श्रनाज उतना उपयोगी नहीं है जितना व्यापारी की दुकान पर; खदान क पास खनिज पदाथ उतना उपयोगी नहीं है जितना कारख़ानो में; नदो और समुद्र के पास उनसे पकड़ी हुईं मछुलियाँ उतनी उपयोगी नहीं हैं जितनी मछली बाज़ार में; बढहुई के यहाँ कुसियाँ और मेज उत्ननी उपयोगी नहीं हैं जितनी एक सामान वेचने वाले की दूकान पर; कारख़ानों के श्रन्दर कपड़ा उतना उपयोगी नहीं है जितना अढ्तियों के यहाँ | श्रतः, हम देखते हैं कि स्थान परिवतन से चीज़ों की उपयोगिता की इंद्धि होती दै । (३) संचय करके उपयोगिता वृद्धि करना--जब फूसल तैयार होती है, अच्न को अधिकता होती है। उसमें से एक बहुत बड़े भाग का उस समय कोई उपयोग नहीं हों सकता । यही बात सभी उत्तादित वस्तुओं पर लागू है। अतः, व्यापारी लोग इन सब को संचय करके




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