कल्पलता | Kalpalataa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ कट्पख्ता
किस बातमें भिन्न है ? आहार-निद्रा आदि पशु-सुलभ खभाव उसके ठीक
वैसे ही हैं, जेसे अन्य प्राणियोंके । लेकिन वह फिर भी पशुसे भिन्न है।
उसमें संयम है, दूसरेके सुख-दुःखके प्रति समवेदना है, श्रद्धा है, तप है,
त्याग है। यह मनुष्यक्रे स्वयंके उद्धावित बन्धन हैं| इसीलिये मनष्य
झगड़े-टंटेकी अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्सेमें आकर चढ़ दोड़नेवाले
अविवेक्लीको बुरा समझता है ओर वचन, मन ओर शरीरसे किये गये अत-
व्याचर णको गलत आचरण मानता है। यह किसी खास जाति या वर्ण या
समुदायका धर्म नहीं है । यह मनुष्य-मा्रका धर्म है| महाभारतमें इसीलिये
निर्वेर भाव, सत्य और अक्रोधकों सब्र वर्णोक्रा सामान्य धर्म कहा है ;--
पतद्धि त्रितयं श्रेष्ठ सवभूतेषु भारत ।
निरवेरता महाराज सत्यमक्रोध प्व च॥
अन्यत्र इसमे निरन्तर दानशील्ताको भी गिनाया गया है( अनुशासन
१२०.१० ) | गोतमने ठीक ही कहा था किं मनुष्यकी मनुष्यता यी है
कि वह सबके दख-सुखकों सहानभूतिके साथ देखता है। यह आत्म-निर्मित
बन्धन ही मनष्यकों मनष्य बनाता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक
धर्मका मूल उत्स यही है। मुझे आश्रय होता है कि अनजानमें भी हमारी
भाषामें यह भाव केसे रह गया है। लेकिन मुझे नाखूनके बढ़नेपर आश्चर्य
हुआ था | अज्ञान सत्र आदमीको पछाड़ता है। ओर आदमी है कि सदा
उससे लोहा लेनेको कमर कसे है ।
मनुप्यको सुख केते मिलेगा १ बड़े-बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओंकी
कमी है, ओर मशीन बेठाओ, और उत्पादन बढ़ाओं, और घधनकी
वृद्धि करो, ओर बाह्य उपकरणोंकी ताकत बढ़ाओ | एक बूढ़ा था ।
उसने कहां था--बराहर नहीं, भीतरश्नी ओर देखो। हिंसाको मनसे
दूर करो, मिथ्याकों हटाओ, क्रोध और द्वेषको दूर करो, लोकके लिये
कष्ट सहो । आरामकी बात मत सोचो, प्र मकी बात सोचो; आत्म-पोषणकी
बात सोचो, काम करनेकी बात सोचो | उसने कह्ा--प्र मे हो बड़ी चीज़
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