केशव - ग्रंथावली भाग - 3 | Keshav - Granthawali Bhag - 3

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Book Image : केशव - ग्रंथावली भाग - 3  - Keshav - Granthawali Bhag - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि, छू अः क (१ । চন... পা দিক 1 সপ ` = পা ভে र ५ संपादकीय १६३ केडिया ने विशेष सहायता की | फिर भी अभी पाठ वांछित रूप नहीं प्राप्त कर सका है। इसकी एक टीका का भी पता चला है। (राजस्थान मे हिंदी के हस्तलिखित ग्रंथों की _ खोज' के द्वितीय भाग से दो महत्त्वपूर्ण खूचनाएँ मिलती हैं --एक सिकरिया की संस्कृत टीका की और दूसरी 'शिखनख” की गुजराती टीका की। 'शिखनख?-टीका की पुष्पिका यो दै--'इति श्रीकेशवदासविरचित शिखनख संपूणे | श्रीरस्तु । संवत १७६२ वर्ष मिगसर सुदि = भौमे लिखितं श्री भुज मध्ये पं सागचंद मुनिना । श्री | यह टीका मी श्रमय जेन ग्रंथालय” मे ही है | टीका उक्त हस्तलेख के लिपिकाल से ११ লক্ষ परवर्ती है। सुधासरः संग्रह मे भी कुछ छुंद इस 'शिखनख? के संग्रहीत है. || उसका आधार मिल जाने से उन छुंदो का पाठ बहुत कुछ ठीक हो गया है। “ केशवद्‌ास ने नखशिखः के अनंतर शिखनखः क्यो लिखा इसका हेतु 'शिखनखः के प्रसंग मे ही उल्लिखित है- नख तै“सिख लौ बरनिये देबी दीपति देखि । सिख तै नख लौ मानवी केसवदासः विसेषि ॥ वस्तुतः तीन प्रकार के ग्रालंबन होते है --दिव्य, दिव्यादिव्य और अदिव्य | देववगं के आलंबन दिव्य होते है , अवतार दिव्यादिव्य और मानव अदिव्य | दिव्य और दिव्या- दिव्य का वर्णन नख से शिख तक और मानव का शिख से नख तक होता है। फारसी में भी सरापा होता है। उनके यहाँ दिव्यादिव्य की स्थिति नहीं है। दिव्य निर्गण है, निराकार है। डरते डरते उसके चरण और हाथ की उँगलियों तक की चर्चा किसी प्रकार की गई | य अंगो का प्रश्न ही नही । इसी से वहाँ अदिव्य-वर्णन ही चला । सरापा या शिखनख तो साहित्य में आया, पर नखशिख नहीं | नखशिख और शिखनख का विभाग भारतीय साहित्यसरणि है। जो स्थापना केशव ने की है वह उनसे पूर्व सूरदास और तुलसीदास से भी दिखाई देती है। उन्होंने दिव्य और दिव्यादिव्य के वर्णन मे वही क्रम रखा है अर्थात्‌ नख से शिख का क्रम ग्रहण किया है । इससे स्पष्ट है कि यह व्यवस्था पारंपरिक है। “नखशिख' के कुछ छुंद 'शिखनख? के स्वतंत्र हस्तलेखों मे पुनरुक्त है | ऐसा जान पड़ता है कि जब 'शिखनख' स्वतंत्र रूप मे प्रचलित किया गया तब उसमे ये छुंद परिपूर्ति की दृष्टि से जोड दिए गए । सं° १७२४ वाली “कविग्रिया? की प्रति मे वेदद्‌ नही है । केवल समाप्तिसूचक दोहा वहाँ अवश्य है | इसकी चर्चा पहले की जा चुकी है । “नखशिख!? से प्रत्येक उदाहरण के पूव दोहे में यह भी निदंश है कि इस अंग के कौन कोन उपमान प्रथित है | यह योजना 'शिखनख' में नहीं है। जितने उपमान प्रत्येक अंग के कथित है वे सब उदाहरण मे अनुस्यूत नही हो सके है | उनमे से कुछ পি সিল उपमान 'शिखनख? में गहीत हुए है । शिखनखः में पाँचवे छुंद के अतिरिक्त रन्यत्र कबि की छाप नही है। 'नखशिख' मे इसके ठीक विपरीत तीसवे छुंद के अतिरिक्त सवत्र छाप है । शिखनखः (कविप्रिया के परवर्ती हस्तलेखो ˆ से कदाचित्‌ इसीलिए हटा दिया गया होगा } सुभे भी एक'वार दसी श्राधार पर ठिटिकना पड़ा | परणए्कदहीहुंदकी छाप ने कुछ आश्वस्त कर दिया। छापन होने का कारण यही जघ्न पडतादहैकिश्रंगो के




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