हिंदी साहित्य की समस्याएं | Hindi Sahithya Ki Samasyaye

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Hindi Sahithya Ki Samasyaye by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० । हिन्दी साहित्य की समस्याएँ डॉ० साहब ने दो स्तरों पर हिन्दी की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयत्न क्रिया है। एक ओर इस भ्रम का निवारण किया है कि हिन्दी किसी प्रदेश की भाषा नहीं है, वरन्‌ वह भिन्न माबाओं के उपर आरोपितं है) वस्तुतः यह भ्रामक आरोप है। हर देश और काल में चछ्ता आया है कि जीवन के सामान्य व्यवहार की भाया की अपेक्षा व्यापक चिन्तन, मतन और अभिव्यक्ति की भाषा उत्त भाषाओं पर आधारित होकर भी उनसे भिन्न होती है। इस' व्यापक भाषा का रचना-विधान, रूप-विधान और व्याकरण, इस' व्यापक प्रदेश की अन्य भाषाओं ने ही गृहीतं होता है। यह बात संस्कृत, पालि, प्राकृत जौर अपभ्रंश के काल मे जिन प्रकार स्वीकृत रही है, उसी प्रकार हिन्दी के बारे में भी देखी जा सकती है। यह उसका ऐतिहासिक दायित्व है, जो उसे आधुनिक सन्दर्भ में राष्ट्रीय स्तर तक्‌ निमाना होगा। डॉ० साहब ने हिन्दी के नाम की समस्या पर भी विचार व्यक्त किया और उन्होंने इस नाम का समर्थत किया। उनका कहना हैं कि इसं प्रकार के नामकरण ऐतिहासिक परम्परा से निर्धारित होते हैं। पहले अपने प्रारम्मिक रूप में उर्दू हिन्दवी कहलाती थी और उस समय ब्रज, अवधी अदि पर आधारित जिस साहित्यिक भाषा का उपयोग किया जा रहा था, उसके लिए भाषा या 'भाखा' शब्द का प्रयोग होता था। इधर सौ वर्षों से जब से साहित्य में खड़ी- बोली का प्रचलन हुआ, हमारी साहित्यिक भाषा हिन्दी कहलायी है। हिन्दी एक ओर भाषा या লাভা উ सम्बद्ध है, तो दूसरी ओर हद के पूवं रूप हेन्दवी से। डॉ० वर्मा ने मारतीय भाजाओं के प्रश्त को भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ा दै! वस्तुतः माषा और संस्कृति में अविच्छिन्न सम्बन्ध होता है। ऐसा नहीं हैं कि कोई संस्कृति किसी भी भावा में अभिव्यक्त हो सकती है। जैसा कहा गया हैं कि मारतीय सांस्कृतिक परम्परा को हिन्दी वहन करती है! यह्‌ कार्य अपने-अपने स्तर पर अन्य भाषाएँ भी करती हैं, परन्तु महत्त्व को बात यह है कि हिन्दी की स्थिति केन्द्रीय है। वह सम्पूर्ण मारतीय संस्कृति के वाहक का काम कर सकेगी। साथ ही, आज के आधृनिक्त जीवत को यही माषा अपनी लम्बी सॉस्क्रतिक परम्परा से जोड़ने में समर्थ हो सकेगी। हर प्रदेश की अपनी भाया और अपना साहित्य है, उस प्रदेश की भाषा उसके सांस्कृतिक जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। परन्तु हिन्दी भाषा इन भाषाओं और साहित्यों कौ आत्मसात्‌ कर उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं को दूसरों तक पहुँचाने का अथवा दूसरे क्षेत्र की संस्कृतियों से जोड़ने का काम करती है। यह हर प्रदेश




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