मित्रता | Mitrata
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. गोपीनाथ शर्मा - Dr. Gopinath Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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म रहती दा, ता भी हमरे प्रशस्त मिक सम्प
में मृत्यु को हम विपात्त के माम से तो कद्ापि न
कह सकते। क्योकि यादि उसमे अव द्द:
चेतन्य नहीं रहा है तो वह “ अपने सम्बन्ध में
ऐसी दशा सें स्थित है कि माना उसने जन्म ६
नहीं किया था। “ अपने सम्प्नन्ध भें ” হুল নি
कहागया है कि मृत्यु के अनस्तर की अवस्था
चाहे केसी ही क्यों न हो उस के मित्रगण ओर उसका
देश तो अपनी स्थिति के परय्यन्त शिवप्रसाद क
इतमे दिवसा तकं जीवेत रहने के लिए सूर्य
आनन्द मनाते रहेंगे।
, अतणव चाहे केसीही दाशि से क्यों न देखी,ज़ार्य
यह घटना जहां तक्र इस का सम्बन्ध भरे: मृत
प्रिय मिन्र से हे मेरी दाष्टि में सर्वथा परिपूर्णं आनुन्दः
प्रद हे. परन्तु अपने निज के लिए एशेवपसादर फी
मृद्यु-निःसन्देह बहुत दुःख का कारण दहे । चकिकेय्
जन्त शिवप्रसाद से प्रथम हुवा भा, इस; लिप
सुिकमालुसार सुभ को उस से पूर्व ही इस संसार
से. प्रंयाण:करना उचित था । परन्तु यह, सोसाग्य
मेरे घारदध सें. न था । तथापि उस की मित्रता पर
< करने-से युके, यह. सेतोप , होता है (কি,
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