खंडेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास | Khandelvaal Jain Samaj Ka Brihad Itihas

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Khandelvaal Jain Samaj Ka Brihad Itihas  by कस्तूरचंद कासलीबल - Kastoorchand Kasliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्रष्ट प्रध्याय में उन विद्वानों का परिचय भिता जिन्होंने प्राकृत, संस्कृत, भ्रपञ्न श राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा में साहित्य सृजन करने का गौरव प्राप्त किया है । ऐसे विद्वानों की सख्या 88 गयी है । नवम प्रध्यायमे समाज कातेरह बीस एवं गुमान पंथों में विभाजन के भ्रतिरिक्त सामाजिक रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालते हुए समाज के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियो का जीवन परिचय दिया गया है । दशम श्रध्यायथ में कला एवं संस्कृति के साथ प्रमुव कलापूर्गा मन्दिरों का परिचय प्रस्तुत किया गया है । इतिहास की सरोज में प्रस्तुत इतिहास मेरी स्वयं की विगत 40 वर्षों की साहित्य साधना का सुफल है । राजस्थान के 100 से प्रधिक जैन शास्त्र मण्डारो में उपतम्ब सामग्री, मूतिलेख, हस्तलिखित पाण्डुलिपियों एवं दूसरे प्रकाशित तथा श्रप्रकाशित सामग्रीके ग्राघार पर प्रस्तुत इतिहास लिखा गया है। लेकिन वह सामग्री मी जव प्रवर्याप्त लगो तो मुझे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, आसाम, आदि प्रदेशी के कोई 70- 80 गाँवों एवं नगरो में घूम कर इधर-उधर बिखरी हुई सामग्री का संकलन करना पड़ा । खण्डेलवाल समाज के इतिहास का राजस्थान ही प्रमुख स्रोत है और यहाँ जयपुर, आमेर, सांगानेर, मोजमाबाद अजमेर, केकडी, नसीराबाद मालपुरा, टौक, टोडारायसिंह, तिवाई, सामर, लुखवां, कुचाभरा, पांचवा लाडतू, सुजानगढ़, श्रलवर, भीलवाड़ा, मॉड्लगढ़, शाहपुरा, सवाई माधोपुर, राएणोली, सीकर, खण्डेला, रेनवाल, जोबनेर स्थल, दौसा झ्रादि नयरों के भ्लावा उत्तर प्रदेश मे आगरा, लखनऊ, बिलारी, रामपुर, मेरठ देहली, मैनपुरी, गोरखपुर, सीतापुर पूर्वान्चल प्रदेश के गोहाटी, डीभापुर, तिनसुखिया, डिब्रू गढ़, मरिगपुर एवं बिहार में गया, कोडरमा, इाल्टनगंज, हजारीबाग, र'मगद़, सरिया, श्रादिमे घूम कर इतिहास लेखन का कायं करता पड़ा । वहां की समाज से प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त की । मेरी इस यात्रा के कारण इतिहास के कितने ही बन्द पृष्ठ खुले है श्रौर वहाँ इतिहास के दोनो खण्डो के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई है । मुझे यह लिखते हुये भी हर्ष होता है कि दो चार तगरो को छोड़कर अधिकाश में वहां के समाज का सभो तरह का सहयोग मिला जिसके लिये मै उन समी महानुमावो के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । विशेष सहयोग इतिहास लेखन की प्रेरणा के स्रोत है गया के श्री रामचन्द्र जी रारा जो खण्डेलबाल जैन जाति के इतिहास मे विगत 30-40 वर्षो से पूर्ण रुचि ले रहे है । उन्होने मृेप्ररणा ही नदी दी लेकिन वै स्वयं मुं साथ लेकर बिहार एव राजस्थान के (३४ )




User Reviews

  • pranshu

    at 2019-09-03 05:34:07
    Rated : 8 out of 10 stars.
    "Thank You. Got what I was looking for."
    This was the book I was looking for. This book is in Hindi and has information about the origins of Khandelwal Digambar Jainism.
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