तान्त्रिक साहित्य | Tantrik Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.2 MB
कुल पष्ठ :
792
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर - Kashinath Upadhyay 'Bhramar'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्न्न् श् प्य
अधिकाण स्थलों में आर्यावर्त के ब्राह्मण ही दिवाचार्य के रूप से, योग्य समझ कर, चूत होते
थे । कामरूप, कब्मीर, कलिज्ध, कोड्भुण, काब्नी, कावेरी प्रभति देशो के ब्राह्मणों की
योग्यता अपेक्षाकृत न्यून मानी जाती थी । यह विवरण है १० शिवागमों तथा १८ रुद्रागमों
के विपय में । _
इनके अतिरिक्त ६४ आगमो या ६४ तन्त्रो के नाम भी णास्त्रो में यत्र तत्र
सिलते है। श्रीकण्ठीसहिता मे ये सब अद्वेतभावप्रधान भेरवागस के नाम से प्रसिद्ध है ।
वामकेव्वरतन्त्र मे भी ६४ तन्तों का नामोल्लेख है । ऋजू-विम्शिनी टीकाकार लक्ष्मण
तथा अ्थ-रत्नावलीकार के मतो की आलोचना भी उसमे है। सेतुवन्ध में भास्करराय
नें इन सब की समालोचना की है और इनके विषय में अपना मत भी व्यक्त किया है ।
श्री नद्धुराचायं की सौन्दर्य लहरी में भी ६४ तन्त्रों का उल्लेख है । टीकाकार लक्ष्मीघर के
मत से ये सब तन्त्र अवंदिक है । परन्तु भास्करराय ने सेतुवन्ध मे कहा है कि यह कहना
ठीक नही है कि ये सब तन्त्र अवेदिक हैं । सर्वानन्द के सर्वोत्लास तनत्र मे भी ६४ तन्त्रों
के नाम दिये गये है । परन्तु यह सूची तोडलोत्तर के आधार पर बनी हुई है। महासिद्धिसार
तन्त्र मे जगत् के तीन विभागों की कल्पना की गयी है--रथक्रान्ता, विष्णक्रान्ता
और अरृ्वक्कान्ता । प्रत्येक विभाग में अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार ६४ तन्त्र है।
नीचे इन ६४ तत्वों की भिन्न-भिन्न सूचियाँ दी जा रही है--(क) श्रीकण्ठीसहिता
के अनुसार, (ख) लक्ष्मीघर सम्मत वासकेरवर तन्त्र के अनुसार, (ग,) भास्करराय
सम्मत, (घ) सर्वोरलास तन्त्र में उद्धत तोडलोत्तर तन्त्र के अनुसार तथा (ड च छ)
महासिद्धिसार तन्त्र के क्रान्ताभेद से तीन |
(क) श्रीकण्ठीसहिता के अनुसार भेरवतन्त्र (१ से ८ तक)--१ स्वच्छन्द तन्त्र,
२ भैरव, ३ चण्ड, ४ क्रोध, ५ उन्मत्त्भरव, ६ असिताज्ञभरव, ७ महोच्छष्म और
८ कपालीग, यामल तनत्र (९ से १६ तक )--९ ब्रह्मयामल, १० विष्णयामल, ११
स्वच्छन्दयामल, १२ रुरुपामल, १३ (१), १४ अथवंण, १५ रुद्र, १६ वेताल,
मततन्त्र (१७ से २४ तक)--१७ रक्त, १८ लम्पट, १९ रष्मिमत, २० मत, २१ चालिका,
२२ पिज्ञला, २३ उत्फुल्ल, २४ विदवाद्य , सज्लतन्त्र (२५ से 3२ तक)--२५ पिचु्भरवी,
२६ तन्त्रभैरवी, २७ तत, २८ ब्राह्मीकछा, २९ विजया, 3० चन्द्रा, ३१ मड्धला,
२२ सर्वेमज्ूला , चक्नाष्टक (3३ से ४० तक)--3३ मन्त्रचक्र, ३४ वर्णचक्र, ३५ णक्ति-
चक्र, 3६ कलाचक्र, ३७ विन्दुचक्र, ३८ नादचक्र, ३९ गृह्यचक्र, ४० खचक्र,
बहुरूपतन्त्र (४१ से ४८ तक)--४१ अन्घक, ४२ रुरुभेद, ४३ अज, ४४ मूल, ४५ वर्ण-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...