तान्त्रिक साहित्य | Tantrik Sahitya

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Tantrik Sahitya  by काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर - Kashinath Upadhyay 'Bhramar'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्न्न् श्‌ प्य अधिकाण स्थलों में आर्यावर्त के ब्राह्मण ही दिवाचार्य के रूप से, योग्य समझ कर, चूत होते थे । कामरूप, कब्मीर, कलिज्ध, कोड्भुण, काब्नी, कावेरी प्रभति देशो के ब्राह्मणों की योग्यता अपेक्षाकृत न्यून मानी जाती थी । यह विवरण है १० शिवागमों तथा १८ रुद्रागमों के विपय में । _ इनके अतिरिक्त ६४ आगमो या ६४ तन्त्रो के नाम भी णास्त्रो में यत्र तत्र सिलते है। श्रीकण्ठीसहिता मे ये सब अद्वेतभावप्रधान भेरवागस के नाम से प्रसिद्ध है । वामकेव्वरतन्त्र मे भी ६४ तन्तों का नामोल्लेख है । ऋजू-विम्शिनी टीकाकार लक्ष्मण तथा अ्थ-रत्नावलीकार के मतो की आलोचना भी उसमे है। सेतुवन्ध में भास्करराय नें इन सब की समालोचना की है और इनके विषय में अपना मत भी व्यक्त किया है । श्री नद्धुराचायं की सौन्दर्य लहरी में भी ६४ तन्त्रों का उल्लेख है । टीकाकार लक्ष्मीघर के मत से ये सब तन्त्र अवंदिक है । परन्तु भास्करराय ने सेतुवन्ध मे कहा है कि यह कहना ठीक नही है कि ये सब तन्त्र अवेदिक हैं । सर्वानन्द के सर्वोत्लास तनत्र मे भी ६४ तन्त्रों के नाम दिये गये है । परन्तु यह सूची तोडलोत्तर के आधार पर बनी हुई है। महासिद्धिसार तन्त्र मे जगत्‌ के तीन विभागों की कल्पना की गयी है--रथक्रान्ता, विष्णक्रान्ता और अरृ्वक्कान्ता । प्रत्येक विभाग में अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार ६४ तन्त्र है। नीचे इन ६४ तत्वों की भिन्न-भिन्न सूचियाँ दी जा रही है--(क) श्रीकण्ठीसहिता के अनुसार, (ख) लक्ष्मीघर सम्मत वासकेरवर तन्त्र के अनुसार, (ग,) भास्करराय सम्मत, (घ) सर्वोरलास तन्त्र में उद्धत तोडलोत्तर तन्त्र के अनुसार तथा (ड च छ) महासिद्धिसार तन्त्र के क्रान्ताभेद से तीन | (क) श्रीकण्ठीसहिता के अनुसार भेरवतन्त्र (१ से ८ तक)--१ स्वच्छन्द तन्त्र, २ भैरव, ३ चण्ड, ४ क्रोध, ५ उन्मत्त्भरव, ६ असिताज्ञभरव, ७ महोच्छष्म और ८ कपालीग, यामल तनत्र (९ से १६ तक )--९ ब्रह्मयामल, १० विष्णयामल, ११ स्वच्छन्दयामल, १२ रुरुपामल, १३ (१), १४ अथवंण, १५ रुद्र, १६ वेताल, मततन्त्र (१७ से २४ तक)--१७ रक्त, १८ लम्पट, १९ रष्मिमत, २० मत, २१ चालिका, २२ पिज्ञला, २३ उत्फुल्ल, २४ विदवाद्य , सज्लतन्त्र (२५ से 3२ तक)--२५ पिचु्भरवी, २६ तन्त्रभैरवी, २७ तत, २८ ब्राह्मीकछा, २९ विजया, 3० चन्द्रा, ३१ मड्धला, २२ सर्वेमज्ूला , चक्नाष्टक (3३ से ४० तक)--3३ मन्त्रचक्र, ३४ वर्णचक्र, ३५ णक्ति- चक्र, 3६ कलाचक्र, ३७ विन्दुचक्र, ३८ नादचक्र, ३९ गृह्यचक्र, ४० खचक्र, बहुरूपतन्त्र (४१ से ४८ तक)--४१ अन्घक, ४२ रुरुभेद, ४३ अज, ४४ मूल, ४५ वर्ण-




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