रास कलस | Raskalash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
625
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६. $ + क ০০
~ दीस ৬,
स्थान-स्थान पर दिखलाई गई है। दूर से. देखनें>पर-दिक्ष्यदामासिराम
पाश्चात्य देशों के उन दुगुणोंकी मिथ्या सनोहरता के बड़ी युक्ति तथा
मार्मिकता से दिखलाने की चेष्टा की गई है, जिनकी बहिरंग-रंग रुचिरता
से समाकृष्ट हो, भ्रांत नवयुवक मृगतृष्णा में भूले-मटके तथा तंग आये
कुरंग वृंद-से पथ-अ्रष्ट अथच ताप-तप्त बन पश्चात् पश्चात्ताप करते फिरते
हः । यही उपाध्यायजी का कवि-संदेश देश के लिये जान पड़ता है।
रचना का एक दूसरा प्रधान उद्देश्य भी यही प्रतीत होता है। वास्तव मे
प्रत्येक लेखक एवं कवि का यही मुख्य कर्तव्य-कर्म तथा परिपालनीय
धर्म है कि बह अपनी रचना के द्वारा अपने देश तथा समाज की
समय-संमानित सभ्यता-संस्कृति का संरक्षण करता हुआ प्राचीन परपरा
का यथेष्ट ( यथावश्यकता ) परिमाजन एवं परिशोधन कर अपने वास्त-
विक धमे-कर्म का प्रचार करे, और पर-प्रभाव-प्रभावित एवं भ्रम-भूल
से भूले हुए नवयुवकों को सत्पथ पर अग्रसर कर देश-जाति के हित-
संपादन में लगे-लगाये। जो लेखक या कवि अपने ऐसे उत्तरदायित्व
को नहीं समझते ओर देश-जाति के हिताहित का ध्यान नहीं रखते या
परखते वे वास्तव मे रचयिता-राजि-भूषण होकर भी देश-दूषण ही
ठहरते हैं। उनकी अमूल्य रचनाएँ भी बिना मूल्य हो लुप होती हुई
अपने साथ समय के गुप्त-गहर में उन्हें भी सदा के लिये सुप्त कर देती
हैं । कोई भत्ते ही इस प्रकार के कवि को उपदेशक तथा समाज-सुधारक
कहता हुआ उसके स्थान को कुछ दूसरा दिखलाने का प्रयत्न करे और
उसे कुछ कस महत्त्व दे--यद्यपि वास्तव में इन गुणों के कारण उसका
स्थान एवं महत्त्व ओर अधिक बढ़ जाता है--कितु ऐसा समझदार
संसार उस व्यक्ति के ऐसे कथन को ही महत्त्व न देगा जो यह जानता
है कि कवि ही वह व्यक्ति है जो देश-जाति को उन्नत एवं अवनत करने,
चनने-विगाडने, योम्यायोग्य पद् देने मे समथं होता है । कचि तो वस्तुतः
सृष्टि का सष्टा है ( “कविसेन्ीषी परिभूः स्वयम्भूःः- वेद् ) वदी अखि-
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