प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाग-2 | Prachin Bharatwaesh Ki Sabhyat Ka Itihas Bhag-2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाग-2  - Prachin Bharatwaesh Ki Sabhyat Ka Itihas Bhag-2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रमेशचन्द्र दत्त - Ramesh Chandra Dutt

Add Infomation AboutRamesh Chandra Dutt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
९) इस काल का साहित्य [ ७ ओऔर नगरबासी “होने के अतिरिक्त और भी घर और कतेव्य दें । उसे यपने घर के लोगों पर, पुत्र, पति, अथवा पिता की नाई' घर्म पीलन करना पड़ता हे । घरेलू घटनाओं के सम्बन्ध मं उस बहुत हू थोड़े विधान करने पड़ते थे ओर वे स्प्रोतसूत्रो के विस्तृत विधानों से बहुत भिन्न थे। इन ग्रह्यचिधानों के लिय एक अलग नियम बनाने की आवश्यकता पड़ी और ये नियम “गृह्मसूजें।” में दिए हुए हैं। इन सीधे सादे गृद्यविधयानों म, जोकि घर फी अज्े के निकट किए जाते थे ओर जिनमे बड़े बड़े यज्ञों की भांति विशेष च्यूल्दे नहीं जलल्‍ाए, जाते थे, बहुत सी मनोरज्षक बाते हैं । घर की अ्नि प्रत्येक गस्य अपने विवाह पर जलाता था झोर उसमें पाकयज्ञ के सीधे सादे विधान खुगमता से किए जाते थे | प्रोफेसर मेक्ससू छ र साहब कहते ह कि “चूल्हे की अस्नि में पक छुकड़ी रखना, देव्ता को अध देना, आर ब्राह्मणाी फो दान देना, यही पाकयज्ञ म दोतता था। गौतम ने सात प्रकार के पाकयज्ञ लिखे हें--( १ ) अष्टका जोकि जद़ेमे चार महीना किष जाते थे (२) पाचेण जोकि पूर्णिमा और अमावास्या को किप जातेथे (३) श्रद्ध अथात्‌ पितरो को प्रतिमास अधे देना (४.७) श्रावणी, आग्रहायणी, चेत्र ओर आस्व- ज्ज जोकि उन महीन की पूणमासी को किष जाते थ, जिनसे कि उनका नाम पड़ा है | इन विधानों का जो बत्तान्त गृह्यसूच्ौ में दिया ই আছ हिन्दुओं को बड़ा मनो रश्कक होगा क्योंकि दो हजार घर्षों के वीत जाने पर भी हम छोंग झब तक उन्हीं मनोर ख़़क विधानों को किसी को तो उसी प्राचीन नाम से और बहुतों को किसी दुसरे नाम जार कुछ दूसरी तरह पर कर रहे हैं। गृह्मसूत्रों में उन सामाजिक विधानों के भी चुत्तान्त दिये दे जोकि विवाहपर, पुत्र के जन्म म, उसके अन्नध्रास्न पर, उसके विद्याध्ययन आरम्भ करने आदि में होते थे। और इस प्रकार से इन अमूत्य शह्यसूत्रों सगे हमें धाचीन हिन्दुओं के घरेलू जीवन का पूरा पूरा इत्तान्त विदित हो जाता दे । ऋग्वेद के साहझ्लायन और आस्वल्तायन गणहयसूत्रों और शक्त- সি यजर्वेइ के पारस्करणछाखूत्र का दमन झोडनवबग साहब ने अनु-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now