बौध्द धर्म के विकास का इतिहास (1976) ए. सी 5471 | Baudhd Dharm Ke Vikas Ka Itihas (1976) Ac 5471

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ बुद्ध ओर उनका युग वैदिक पृष्ठभूमि आर्यतरीय और आंधर्म---प्रागेतिहासिक काल से भारत ताना जातियों और संस्कृतियों का आश्रय रहा दै ओर उनकौ विभिन्न प्रवृत्तियों तथा जीवन-विधाओ के संधषं ओर समन्वय के द्वारा भारतीप इतिहास कौ प्रगति ओर सस्कृति का विकास हुआ है । इस विकास मे आर्येतर जातियो का उतना ही महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है जितना आर्य जाति का। पिछले इतिहासकार भारत की आर्येतर जातियो को प्रायः बबैर अथवा असम्य मानते थे, अतएव यह्‌ कल्पना करते थे कि वैदिक तथा परवर्ती भारतीय सभ्यता के अभ्युम्रत तत्त्वे मूलतः जर्यो की देन होगे । परन्तु अब हरप्पा- सस्ति के पता लगने पर न केवल यह दुष्ट श्रान्त ठहरती है, ्रत्युत्‌ यह्‌ प्रतीत होता है कि भारत में आर्यो के आक्रमण को एक सम्य प्रदेश में बबंर जाति का प्रवेश समझना चाहिए ।' यद्यपि आर्यों ने अपनी पूर्ववतिनी आ्येतर सभ्यता को ध्वस्त कर अपनी विशिष्ट भाषा, धर्मं ओर समाज को भारत मे प्रतिष्ठित किया तथापि यह्‌ निषिवाद है कि यह्‌ सास्करतिके विष्वस निरन्वय विनाश नही था ओर सिन्धु-संस्कृति के अनेक तत्त्व परवर्ती आर्य-सम्यता में अगीकृत हुए । आये तथा आर्येतर सास्कृतिक परम्पराओं का यह समन्वय भारतीय सम्यता के निर्माण की आधार-शिला सिद्ध हुई। इसका प्रभाव एक ओर उत्तर वेदिक-कालीन समाज-रचना में स्पष्ट देखा जा सकता है, दूसरी ओर उस बौद्धिक और आध्यात्मिक आन्दोलन में जिसका चरम परिणाम वौद्ध धर्म का अभ्युदयं था ।' १-तु ०--पिगट, प्रिहिस्टरिक इण्डिया, प्‌० २५७-५८ 1 २-्र०- लेखक को स्टडोज् इने दि गोरिजिन्स आव बुद्धिर्न, अध्याय ८ }




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