धर्मपरीक्षा (1978) ए. सी 5430 | Dharm Pariksha (1978) ac 5430

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Dharm Pariksha (1978) ac 5430 by बालचंद्रजी शास्त्री - Balchandraji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना घमंपरीक्षा १. हस्तलिखित ग्रन्थोंकी संकलित सूची देखते समय घर्मपरीक्षा नामक जैन ग्रन्थोंकी एक बहुत बड़ी संख्या हमें दृष्टिगोचर होती है। इस लेखमें हम विज्येषतया उन्हीं धर्मपरीक्षाओंका उल्लेख कर रहे हैं, जिनकी रचनाओंमें मसाधारण अन्तर है। [१] हरिषेणकृत धर्मपरीक्षा--यह अपभ्रृंश भाषाम है और हरिषेणने सं. १०४४ (-५६ सन्‌ ९८८) में हसकी रचना की है । [२] दूपरी पधमंपरीक्षा अमितगतिको है। यह माधवसेनके शिष्य थे । ग्रन्थ संस्कृतमे है और से. १०७० ( सन्‌ १०१४ ) में यह पूर्ण हुआ । [३ ] तीसरी घमंपरीक्षा वुन्तविछासकी है। यह कन्नड़ भाषामें है और ११६० के रूगभग इसका निर्माण हुआ है । [४ ] चौथी संस्कृत घरंपरीक्षा सौभाग्यसागरकी है। इसकी रचना सं. १५७१ (सन्‌ १५१५) की है । [५] पाँचवी संस्कृत घर्मपरीक्षा पश्ससागरकी हैं । यह लपागच्छीय घर्मसागर गणीके शिष्य थे । इस ग्रन्थकी रचना सं. १६४५ ( सन्‌ १५८९ ) में हुई । [६] छठी संस्कृत धर्मपरीक्षा जयविजयके शिष्य मानविजय गणीकी है, जिसे उन्होंने अपने शिष्य देवविजयके लिए विक्रमकी अठारहवीं शताब्दीके मध्यमें बनाया था । [७] सातवीं घर्मपरीक्ला तपागच्छोय नयविजयके शिष्य यशोविजयकी है । यह सं. १६८० में उत्पन्न हुए थे और ५३ वर्षकी अवस्थामें परलोकबासी हो गये थे । यह ग्रन्थ संस्कृतमें है और वृत्ति सहित है । [८] आठवीं घर्मपरीक्षा तपासच्छीय सोमसुन्दरके शिष्य जिनमण्डनको है । [९] नवीं धर्ंपरीक्षा पादर्वकीतिकी है । [१०] दसवीं धर्मपरीक्षा पूज्यपादकों परम्परागत पद्चनन्दिके शिष्य रामचन्द्रकी है जो देवचन्द्रकी प्रार्थनापर बनायी गयी । यद्यपि ये हस्तलिखित रूपमें प्राप्य हैं और हनमें-से कुछ अमी प्रकाशित भी हो चुकी हैं। लेकिन जबतक इनके अन्तर्गत विषयोंका अन्य ग्रन्थोंके साथ सम्पूर्ण आलोचनाट्मक तथा छुलनात्मक अध्ययन नही किया गया है तबतक इनमें-से अधिकांश हमारे लिए नाममात्र हो हैं । २. यह अमितगतिकी धर्मपरोक्षा है, जिसका पूर्ण रूपये अध्ययन किया गया है। मिरोनोने इसके विषयोंका सविस्तर विष्लेषण किया है। इपके अतिरिक्त इसको भाषा और छन्दोंके सम्बन्धमें आलोचनात्मक रिमार्क भी किये हैं। कहानीकी कथावस्तु किसी भी तरह जटिल नही है। मनोवेग जो जैनधर्मका दृढ़ श्रद्धानी है, अपने मित्र पवनवेगकों अपने अभीष्ट धर्ममें परिवर्तित करना चाहता है और उसे पाटलिपुत्रमें ब्राह्मणोंकी सभामें ले जाता है। उसे इस बातका पक्‍का विश्वास कर लेना है कि ब्राह्मणवादी मूर्ख मनुष्योको उन दस है, अनेकास्त वर्ष ५, कि, १, प, ४८ आदि উজ্ঞামাহ অহ ।




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