महाकवि मतिराम | Mahakavi Matiram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अयुक्रम विषय पृष्ठ प्रथम अध्याय ; अलंकृत काव्य के मूलतत्त्व और परिवेश ३-४८ चित्रकला में अलंकरण की प्रवृत्ति ८, मूर्तिकका मे अलूंकरण की प्रचतत्ति ९, संगीतकलछा में अर्ंकरण की प्रद्त्ति १०, काव्यकछा में अलंकरण की प्रवृत्ति १०, अलंकृत काव्य को विविध परम्परा ११, संस्कृत महाकाव्यों में अलंकृत काव्य का विकास ११, संस्कृत नाव्कों में अलंकरण की प्रवृत्ति २०, कथा आख्यायिका में अलुकार २४, मुक्तक काव्यों का उदय और अलंकरण की परवृत्ति २८; काव्य शाख मे अलंकार का स्थान ३४; रस सम्प्रदाय ३५; रीति सम्प्रदाय ३८, वक्रोक्ति सम्प्रदाय ३९; ध्वनि सम्प्रदाय ४१, औचित्य सम्प्रदाय ४१, यरुकार सम्प्रदाय ४२, अरंकार ओर उसका ऐतिहासिक क्रम विकास ४४, अलंकार ४४, अलंकारों का क्रम विकास ४७ | द्वितोय अध्याय : सध्यकाछीन हिन्दी कविता में अ्ंकरणबृत्ति ४९-९९ मध्यकाल ४९, अलंकृत काव्य की परम्परा ५०, हिन्दी प्रबन्ध काव्यो में अलंकार ५३, गीत और मुक्तकों में अलंकार ६१, प्रवन्ध मुक्तक ६१, स्वत॑त्र गेय मुक्तक ६७, द्रवारी साहित्य का विकास और युक्तकों के सहारे अरंकार- योजना ७०, दरवारी साहित्य ७०, दरबारी रौनक पर विदेशियों का प्रभाव ७२, वैभव तथा रेदवयं की पधानता ७३, विलासितां तथा इन्द्रिय लोडपता ७३, कलाप्रियता ७४, अलंकृत मुक्तक काव्य की परम्परा ७७, रीतिवद मुक्तक कांब्यों सें अलंकार ७७, केशवबदास ७८, चिन्तामणि ७९, भूषण ८०, देव ८१, कुलपति मिश्र, सुखदेव मिश्र, श्रीपति, भिखारीदास तथा बेनी प्रवीन ८२, प्श्राकर ८३, प्रतापताहि ८४, रीति सिद्ध झुक्तक का्पों मे जङंकार ८४, रहीम कविं ८५ गंग कवि ८६, मुबारक अली ८७, सेनापति ८७; बिहारी ८८, रसलीन, सैयद गुखमनबी बिल्मामी, ससनिधि ८९, विक्रम सतसई ८९, राम सतसई ८९, रीति- मुक्त मुक्तक कावब्यों से अलंकरण की प्रवृत्ति ८९, अगारपरक रीतठिमुक्त काव्य ९६०, आल्म-शेख ९०, नेवान ९०, घनानन्द ९१, बोधा ९२, ठाकुर ९२, वीर- रस भधान रीतिञुक्त कार्य ९२, पृथ्वीराज सिष्ट ९२, दुरा जी ९२, गकीदात्त १३, सर्यमलल ९३, मध्यकालीन हिन्दी साहित्य सें कांब्य घास्त्र ९३, ऋरृूपाराम ९४; मोहनलछाल्‍कू मिश्र ९४, नन्ददास ९५, बटमठ्र सिक्ष ९५, अर्दुरध्म- सानलाना ९५, करनेस ९५, फेशवटास ९५, परिपाठी बन्धु ( चितामणि, भूषण,




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