अभिधान राजेन्द्र भाग 4 | Avidhan Rajendra Bhag 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
119 MB
कुल पष्ठ :
1448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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घपटपथः ।
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श | सपतसमन्तरनो वेदिनव्य , हनरस्य तवृनुरूपानुष्ठानपक्स्यमा-
রর वेन नस्य मिथ्यारूपत्वात् । आह च-' नाणी तवाम्नि निरगो,
“| चारेत्ती साचणादजाग नि) ' खाच रागाऽ<दिद्ाप्मनदान-
५ | सब॒रूपविषयफश्रगोचरा यधागमम्रेबमव्स या-
च| जे कुच्छियाएुआओगो, पय5यदशुद्धस्ल हा जीवस्स |
श | থা লা नियाण, बुहाणनय सदर पय ॥ १ ॥
সা रूप पि लकिब्नला-5ाभस्लेगा पीइमा३ विग) च ।
हि অমল বন, श, पञ्नपि अलोहण चच॥ २ ॥
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7 संपत्तितिष्फबों के-चल तु सूत्र अनस्थाणं ॥ ३े ॥
४; | जम्मजरामग्णा९,चत्तरुत फलते त स्वसारो ।
च| प्रहुजणनिद्त्रेयफर।, एसो [चि ताध चेव ॥ ४॥ ” अत ।
पं | श्रनि च-सरत्रानुल्लारेण क्वाना55इिपु यो नेगल्तयणाज्ष्याससरूत-
है | जुपाडयि जाबता जेदितब्या, तस्पा आप राग।उउद्यिनिपक्षत्दा-
কর लू | नहि तत्यवुृत्या स्म्यगक्कानाउउद्यज्यासे व्यापूतमनस्कस्य
कई ीशरीररामणीयकाइडादिविषये चत, प्रत्॒त्तिमाननाति, तथाऊ- '
নু ' नुपन्नस्मात् # एनेन লিক गागाउदादिविग्हबष्य तीथकूतां ज-
র্ गवताम । श्रत पतर रागठपराउउदिशश्रनू जयन्त्यजिनज्ञवन्तीानि
चह | नीयसतपयायरस्य जिनराच्द्म्य व्युत्पा नमन्त, प्रनरलानि(मि-
¦ त्तच भावय।न्त मबुकाः। सिद्धे च तस्मिन् गागाऽश्टयनायरऽनु-
श | गभाषणकार गाभावात्_ समुपादेयबच्चनताउनिर्वेचर्ना यतामाव-
রা ¦ इत्यब जिनवरस्य । उक्तं च- रगाद् यरा दठेपद् बा, मोहाव वा
भ | वाकणमुर्यन हयन्तम् । यस्त नेत दाप -स्तस्यानातकारणा क्र
| स्यात् !१॥ (कन्य. अणु उकचपर पश्व पगायण। जं
हे , जिणा जगप्पनरा | जियरागदासभाद्ा, य नएणडदाबइणों तेश
है ॥0०॥ 7 इति लिछ परानिखधाननमुखत्वेन जिन वचनस्य ि- :
है विश्वप्तसानतस्वम | #। अस्तु तावत तीथेकृतां जितरागज्ञेबत्व
রি | तथापि [मध्यावृशन समसूदभबत्वाटू लितवच्ननन्य कथ प्राभा-
मा प्रथम्ड्वीकरगीयपम | जिनवचनस्थ मिश्यात्विदशेनसम्रहरूपत्थ
ध | तु श्रीसिद्धसेनदिवाकरोउष्य+युपगच्छाति । तथाह- भई मि-
2 चडादतण-सप्ूहमदवस्य अमयलारम्त। जिष्वयणम्ग् मग
चर, चच्रा, सावग्गसुदाहिगम्नम्स ॥ ७ ॥ ` ( तर्नण ३ फार )
५ | ततखा,यतक्तिष्यादशनरू मूहमय तत्कथ सम्यप्न 4ताग| सवा य ति
व न [है ।वषपक्नाणकासमदसयस्याम्रतरूपताउ5 पाक प्रालद्धा |,
है | झत्र प्रतिविवीवत-जलद् युक्तम। पर्यरानरपेक्लग्रढ 555 न-
+ यकपा ऽ परन्लाद्न्या ऽत दनिय्या दरानानां থহ্ক্দহললসঘক্ধী-
६५ नानमासादिनानकान्तर्प्ाणां विषक्णिकामृहविदापमय-
> | स्याम्रलम्बदोदैग्यव কজন্ছনাততনত | दञ्यन्त তি অনা |
ये | उड्ठयोठपि भात्रा। परम्परखयोगावरशाप्मवाला। खम्तासादि-
नेई | सपरिश[स्यस्तरा अगरकूपत्तामात्मचात्कुबोणः, দা নাউ এ
श নৃলবক্ট্র শ্বাথছলনাখালালভ-ম্বলাহ* নামা ম্'লগা।ল।লাম-
सबिपरूपतामासादयनत्तर । न चाध्यक्ष्नलिद्ध।थेग्य पथनुया-
१, गाविषयता, अन्यथाउस्यादेरपि दाह्वदनशक्त्यादिपयनुया-
३६ | गाउडप्तः | अ्रत पथ निरपेद्या नेगमाउ दया छणया:, म्नापे-
४१ स्तु रुनय। उच्यरन्न । द्मनिद्रतायमखाद चद् चदिवृषभ-
টু स्तुतिइ,साभिद्धलेनाउउचा येबचनश्र-- ' नथ।स्तथ स्थात्पदृत्ता-
,६| छछुना इस, रसापावए न्ध शब्लोह्ातवः। अधनयज़िप्रतफना '
है, यतस्ततो, मत्रन्तमार्याः प्रणता हितवाएः ॥ १॥ इंति | श्र
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मिच्यादशनसमरदा नगमाऽष्दरयः, पकंकनगमा + ऽत्रनयस्थ श-
सातरथ्ःत्र।त् ` पक्कङ्का त स्रायटा। ` इत्यद्यागबप्रःसाणय्रात्
झजयत्रा यस्य तन्मिथ्यादुकानसमृहमयम् , जिनवचन-
स्५ नेगमाञ-कयः सापक्ताः सप्तावयवाः, तषाप्रप्यकतेकः शास-
था व्यवम्धित रत्यानप्रायः । समृररूप्रसप्तनयद।टरणापकया
च स्मर्हप्रदशनमागमना विहघनि, सामान्यविशपाऽऽन्मक्न-
न्वात् चम्तुनस्व्रस्प, सामान्यस््कलन्वान् , तब्वितक्ायां यदेच
घटा. ऽपर ष्य स्यादेकामति प्रयमनङ्घशिपयः, दव द् शक्ा-
स्प्रयाजनमद्।द् नानात्व प्रनिप्र्मानं तद्धिवकया स्याद्नंक-
मिनि द्वनाबभङ्गायषयः, स्वेबोनया इ्म्कमेक्देकशब्देत य-
दाऽमिध्वातु नगशक््रत तद स्यादवक्तव्यामनि লুলাছগলল্লানৰ-
यः, यदेवाबकाशद।तत्वेनासाधारणनेकमाकारा, तदेचायगा-
ह्यावगाहकावगाहनाकरिया भदादनेक नवाति, तद्पे धिना तस्या-
घन्सुत्याप््पक्त: | प्रदेशभदापेक्तया उप च तदमकपत | अन्यथा
हिगयद।नन्च्यया ग्प्यकद्शताप्राप्त,। तस्य थे तथाबियक्काबां
स्थादक चानेक लाते चतु:ड्रायिपयता । यदकगाकारां ज्वतः
प्रास नव्रफर्िन्नचयय विवर्किन पकमरवयदस्म्राचयवान्नर।-
दू भन्ञज्िप्लानां वाचकस्य शब्द स्पाभाव।द्वक्तव्य चति, तथा वि-
वक्ायां स्यादकमवकतव्य चनि पञ्चमभङ्गाचषय. | सद् यदेव-
कसाक्रारा पास्रू भवचनः, तद्चगाष्ाचगादहनःक्रयानदाद्नकम्
पदान द्ल्वर्प्रातपवृक्शष्ाभम' वाद् चन्त्व्यं चत पष्ठगङ्गश्पियः।
यदेवेकगाकारा5फ्मकतया5इपकाश जवतः प्रप्तिछ्, तदब तैक-
मबगल्यावयणाहुनानिया उपेत्षया न क , रागपत्प्रतिपादनापक्याउ
वद्य जात ल््यादइकमनेफमचक्तब्य चात सप्तम भक्वावषय-। एच
स्थान स्वथगर. स्यथादजचेगला घरा55व रिस्थायि का ४ पि सप्तनड्ली
चक्तद्य। # | एलन सिथ्याद्ररानस्रमु्मयन्वप जिनदेचनम्य,
तिश्रकापिकासमूद- त्रि पमयस्यास्नसारवघ्प)व्रधस्वमाविरु-
मे | पिशरयिमस्तरस्तु ' जिणवयण ` उाञ्र ६५०२ पृष्रादारभ्य
रृध०७ पृष्ठयथन्त विपश्िदृसिरवन्नाकनीय:। ततः ंप्यनमतत्-
/ जिणबयणकप्परुक्खो, अणगसुक्तत्थसालाबारयथन्ना ।
तवनियमकुसमगुच्छो, ख॒ग्गब्फल बधणा ज़यह ॥ १॥
লও वि ये सदछता, सदब्वरयगामया सतप्नाक्केा |
जगवयणम्स सगवग्रो, न तुल्नासय त श्चगाग््रय ॥ २॥ ''
'* अयात जगद्कप्र्गत्-मपटनान.शपदुरिनयनतिमिरम् |
राधाबम्बननिव यथाम्थत-वस्नतुचिकाश जनशषच' ॥?॥ `
“ नरनरगा।तलारथखुगगण-खल्त। से यरूव्य दु कघरागाण |
जितनयणमंगम।भद्द-मफबग्गगु हक फलय ॥ १॥
जिणवयरजमप्रोपगस्ख বানি আর दवा य खज्ञमाणस्ख |
(नत्ति নুর । ন হান ও, ভুলতত্ন। বজালকল | 5 ॥
जीवाज्बन्य,जतगा-कोसल्नगुणेण5्लतनखार सण |
रासचयणांद अजय, जा णद्वयण महात'नय ॥ ३ ॥
जन्मजरामरणभयन्रामतुरते ब्पाघवदन प्र+त ।
जनवरव्रयनादुन्- नाम्न शर.५ हां बदले के ॥ है ॥ !
तस्मात् जिनवच्नवरूजिन।» चधातिपननन भव्येन भरव्यम् ।
यत--
^ सनणकर्णतु रमक, टद् रुत सटहाणसज़ुत्ता |
হহহ विणा कस, यी सम्मसरयणस्ल॥ १॥
বল?
४ जिणवयण झचुरला, जिणवयण जे काराते भाषेण ।
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