टूटते बन्धन | Tutte Bandhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
295
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म-विसजेन, तुम्हारे यह यसू, यह अनन्त क्या, देवता भी सहनं न
कर पायेगे | ये आँसू तो उस महान हृदय को भी हिला देंगे। जाने
तुमने कितनों बार कहा, जाने तुमने कितनी बार सुना कि यह भिखारी
ओर जीबन में एकाक्रो अनन्त और है, तुम और! दोनों ही दूर हैं।
| ही विपरोत हैं। ओर तुम इसी को अपना जीवन-साथी चुनने चंली
হী! तुम इसी को अपना अक्षत्-प्रेम प्रदान करने आई हो! भला
इसमे संगति कह है ; मेरा तुमसे आम्रह्न है कि हीरे को कूढ़े के ढेर पर
मत फेंक दो । उसे उपयुक्त व्यक्ति को दो । उसे चमकने का अवसर प्रदान
करो, एकादशी [” द
तदन्तर ही, अनन्त ने फिर कहा--तुम सोचती होगी कि यह
तुम्हारा बचपन का साथी कतेव्य की भावजुकता में बहा जा रहा है।
भावशेवादी बनने चला है। नहीं, एकादशी ! वास्तविकता यही है। में.
अपनी दुर्बेछता समझता हूँ । वैसे नारी का मोह मुझे भी सता सकता
है। वह लालच भुझ में भी है। किन्तु मेंने रुपया नहीं पाया तो क्या,
कुछ विचारों का समूह तो एकत्र कर पाया है। मेरे गुह भी द्रिद्र और
निधन ये, वृद्ध थे, उन्होंने मुसे जो कुछ पढ़ाया, जितना सिखाया; में
अब उसी को अपने जीवन पर उतारना पसन्द करता हूँ। में उन्हीं शब्दों
पर आश्वित हूँ । अतएव, में नहीं चाह गा कि तुम सरीखी कोमछ और
अक्षत युवती के प्रेम का इस अकार दुरुपयोग कहूँ| उसे सड़ाऊं । वह
तो मेरे जीवन की पत्ित्र निधि है। शाङत है! अमर है। उस
भावना पर तो मेरा जीवन ही टिका है । तुम्हारे कारण ही में इस गाँव में
. पड़ा हूँ।” यह कहते हुए अनन्त ने साँस भरी और फिर बोछा--“विश्वास
करो, भाज की तरह यइ अनन्त तुम्हें सदा याद रखेगा
(६) ।
तुम्हारी मीठी
উস
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