ग्राम देवता | Gram Devta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राम-देवता : १५
दो-तीन बरस वाद जदा-जूट बढ़ाये लौटा तो पटष्ठोस के गाँव के चावा जी
उसकी बीबी के साथ परदेश जा चके थे। तव से गिरगरिट्या गाँव क्ते सिवान
पर पीपल के नीचे रहता है | जून-छुजून गाव में ज्ञाकर दो फौर किसी
के यहाँ बैठ कर खा लेता है भौर नारद जी का पेशा करता है | सदर जग
गिरगिद भगत मौजूद हैं । शादी मरन-जीयन से लेकर प्रचाइत-
'त्यीहार तक ।
गाँव में सूखा पड़े तो गिरगिट भगत खुश होकर धमते हैं । किसान
इनकी अकाल-खुशी से चिढ़ते हैँ तो भगत बद्धते हूँ हम बोला है भगवान
से। मत वरसाओं पानी । गाँव में दया-धरम नहीं रह गया और बेईमानी
करो । ओर चोरी करो। भौर बाबा लोगों को अपने घर में सुलावें घमा-
इन लोग और त्तीड़ी पिलावें | पानी नहीं वरसेगा | हम बोला है।!
जय पानी बरसत्ा है, और कई-फर दिन तक लगातार चरसता है तो
गिरगिट भगत कहते घूमते हूँ, 'हम बोला है मेष राजा से ओर प्रले करो ।
अत्याचार हो रहा है है। चमार खटिया से नहीं उतरता है, बावा को देख
कर । बावा चमार के धर में पीछे से घुसता है । मुसलमान को अण्टा नहीं
मिलता । बावा अण्डा खाता है। दूध में साला पानी मिलाता है হাহান ন
कंकड़ । अब पानी नहीं खुलेगा ।/
त में सन्नादा है। काशी का हाथ जोड़ते-जोड़ते बुरा हाल है।
मूंडवा कभी रोता है। कभी रोते-रोते बद़का को, कमी अगने कभाय हो
गाली देता है । कहता है. 'है भगवान् नियाव करो । पायी का पाय कहने
“पर हमको उल्टा डॉट लगाते हैं। ई पंचादत नाहीं रावण का दरबार है ।'
मुंडवा की माई, जिसको कभी किसी ने घर के बाहर नहीं देया, पंचा
के सामने अंचल फैलाये भीस मांग रही है, 'पंसों, नियाव करो । मुंडवा
के बाप के सिर पहिले ही फर्जा है। बैल चलि जाई तो हथार गाँव छूट
जाई। सरकार माई-बाव | दोहाई ।'
उधर समारों में ह74दंग मन गया है । মাগন নাহ घोहझदा
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