हिंदी साहित्य एक आधुनिक परिचय | Hindi Sahitya Ek Aadhunik Paridrishya

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Book Image : हिंदी साहित्य एक आधुनिक परिचय  - Hindi Sahitya Ek Aadhunik Paridrishya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ हिन्दी साहित्य लगता है। मानव जर मानवेतर के सम्बन्ध के विकास का अब से आज तद अध्ययन करना यहां अनावदयङ है। यहाँ इतना ही वहना यथेप्ट होगा कि विज्ञान वो उन्नति के साव-साथ मानव का मूल्य वढता यया है नौर मानवेतर वा मूल्य घटता गया है। विज्ञान ने नैतिकता को ईश्वरपरक न मानवर मानव-सापेक्ष मान तिदा है, मानव वी उस की परिवत्पना चाह क्तिनी भी विस्त्रोध हो। ईश्वर वे दरवार में सब प्राणी समान हो सकते थे, मनुष्य दे दरवार म स्वनावन वैसा नहीं सकता क्‍योंकि वह मनुष्य का दरवार हैं। इस प्रतार ससार का मानदण्ड मनुष्य को मानते हो हमारी नैतिकता के आधार में बहुत से जवश्यम्भावी परिवर्वव होने लगते हैं। दूसरे शब्दों मे, हमारी सवेदता वा रुप बदल जाता है । यह नही कि सवेदना ने तिबव बोध का पर्याय है। किस्तु पराप-पुष्प वी साइना बदलते ही हमे सुख या पीडा देने वाली परिस्थितिया दाग रुप भी बदल जाता है, हमे जिन्तित करने वाते या उत्साह देने वाते तरव मी दूनर हो जने है । रने आदं हाम्यास्पर या दुर्वोध हो जाते हैं, जो बातें एक समय नगायथी वे जीवनादर्श का सामथ्यं ग्रहप दर लेती हैं । एक समय था जब क्षि चीटी दा खटमल थे लिए अपने प्राणों को जोखिम में डालने वाला पुष्पात्मा होता था, एश समय हैं. हि कौयो और बन्दरों को रोटी खिलाने वाला समाजद्रोही गिना जाता है वपाजि मानव के लिए रोटी को कमी है । एक समय था जब कि धर्म ते विए जान गेंदाने वाला सर्वोच्च सम्मान पाता था, एक समय है कि योडे-योडे समय वे लिए दो-तीन बार घमं-परिवर्तन कर लेना भी अनुचित नहीं समसा जाता वल्त्रि दुद्ध परिस्मितिया भें अनुमोदित भी होता है। वाह्वव में जहाँ तक साहित्य या विसी भी कला वा प्रइन है सवेदना से हमारा धक्निप्राय निरी ऐन्द्रिय चेतना से विलकुल भिन्‍न कुछ होता है। गर्म और टडा, उजाजा और भेंधे रा, सादा और रगीन, खट्टा और मीठा, नर्म और बढोर, ब्ं श और मधुर, यह सत्र भी इन्द्रिय-सवेद्य है। और संवेदना का यह स्वर नैविवता मे परे है। यह कह लीजिए हि यह उस का जैवित स्तर है, मानवीय स्तर नहीं। इस कोटि की सवेदना जीव मात्र भे होती है और मानव में भी उस दे जीव होने वे नाते ही । किस्तु जो सवेदना उसके नैतिक बोध रे साथ गुं थी हुई है वह दूसरे स्ठर की है। वह अनन्य रूप से मानव वो है और उसी वे कारण जीवों मे मानव अद्वितीय है। इसो दात को हम टुसरे झस्दों मे वह सउते हैं स्वेदना का सम्दन्ध ज॑विर परिस्थिति से नहीं, सास्हृतिक परिस्थिति से है। जिस संवेदना बी बात हमदर रहे हैं जिमे 'माहित्य-दोप' वा या और व्यापक स्वर पर बला-बोध वा नाम दिया गया है, वह्‌ वास्तव म सास्द्ृतिक बोप हो है और इस लिए অতি ই মান্য হলনা भी रहता है। त




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