सेनानी पुष्यमित्र | Senani Pushyamitra

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Senani Pushyamitra by सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेनानी पुप्यभितर १५ चारा ओर एकत्र हो जात। यवन माताएँ बच्चा को उनके पास ले जाकर क्हती--स्थविर ! यह बालक अभी से उस दिन वा स्वप्त लेनें लगा है जबकि यह भी कापाय वस्त् धारण कर नवविहार म शिक्षा के लिए जाएगा। बेटा, स्थविर का प्रणाम करा ।/ मधुर मुसकान वे! साथ अपना दाया हाथ ऊँचा उठाईर स्थविर बालक को आशीर्वाद देत--आयुष्मान्‌ हो, बुद्ध, धम और सध म तुम्हारी श्रद्धा सदा स्थिर रहे। सदा त्िरल की संवा करो ।” सम्पन यवन परिवारा बे लोग सस्टरृत भापामे दही वात विया কব জীব পালাই নন্দন म ही अपनी सतान का सस्छरत सिखाती । आधाय वीरभद्र ने यह सव अपनी जाखा से देखा और गव से उनी छाती पूल उठी । वाल्हीव नगरी वी पौर सभा ने एक दिन वीरभद्र के सम्मान मं भोव बा आयोजन किया। সালাম তব स्वागत करे हुए महापौर न बहा-- भारत के विश्वविख्यात आचाय को अपने देण म धममहामात्य के पद पर नियुक्त देखबर हम अपार हप है । यवन और भारतीय एक ही आय जाति की दो शाखाएँ हैं हम सब म॑ एक ही रक्त प्रवाहित हा रहा है। पवत और भारतीय परस्पर भाई भाई हैं। हमारा सम्बंध बहूत पुराना दै । टम पवन लोग भारतीयो के छोटे भाई हैं और साथ ही भारत के ऋणी भी | भारत ने हम धम का सच्चा मा प्रदर्शित क्या है। विशाल मौय साम्राज्य हमारा पडोसी है पर उसकी शक्तिशाली सनाआ ने कभी हम पर आक्रमण करने का प्रयत्न नही किया। फिर भी हम भारत से परास्त हा गए है उसके धम से उसकी सस्ट्ृति से, ओर उसके सद्यवहार से। भारत के लोग हमारे देश म सवत्न छाए हुए हैं, हमे दास बनान के लिए नहीं, हमे पराकात करन के लिए नही, अपितु हमारा हिंत और कल्याण सम्पादित क्न के लिए। प्रियदर्शो राजा अशोक ने धम विजय की जिस नीति वा अनुसरण दिया या, उन हमारे हृदया को जीत लिया दै আট নাভী হয यह यबन राज्य भारत के विशाल सास्क्ृतिक साम्राज्य के अतगत हो गया हे। हमे विश्वास दहै कि आचाय वारभद्र के कत तत्व से यवना और भारतीया के सौहाद्पूण सम्बंध म औौर भो अधिक वढ्धि होगी और वाल्हीद देश तथा भारत की मत्ती सदा स्थिर रहेगी ।




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