जूलियस सीजर | Juieyesh Sijar

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Book Image : जूलियस सीजर  - Juieyesh Sijar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला भ्रक १५ হা : तब तो मैने तुम्हारे भावों को समझते में भूल की है और इसी कारण से मैने अपने वे विचार भी तुम्हारे सामने प्रगट नही किये जो वास्तव में बडे ही महत्त्वपूर्ण, गभीर और लाभदायक है । बताओ्ो ज्र टस । क्‍या तुम अश्रपने आपको देख सकते हो ? नरूटस : नही कंडस । आँख अपने आपको तब तक नहीं देख पाती जब तक वह अन्यत्र कोई प्रतिविव न देखे | कदस : यही वात है । तुम्हारे लिये यह्‌ सवसे वड़ी वेदना है कि तुम्हारी आँख को ऐसा दर्पण नहीं मिला जिससे तुम अपना विब देख सकते, जिसमे तुम अपनी श्राँखो मे छिपी योग्यता को पहचान पाते । उसके विचा तुम्हे अपने महत्त्व का अ्रनुमान ही कंसे हो सकता है ? देवताश्रों के समान महान सीज़र के अतिरिक्त मेने रोम के सभो परुषो को यह्‌ कहते सुना है कि इस कठोर और यातनामय युग मे यदि क्नू टस अपनी योग्यता को स्वय देख पाता तो कितना अच्छा होता ? बृटस : केशस । तुम मुभे किन खतरो मे ले जाना चाहते हो, क्योकि तूम मुभमे वे बाते भी मुझसे ढूढ लेने को कहते हो जो कि वास्तव में मुभमे हैं ही नही ? केशस : भद्र क्ष टस ! तो सुनते के लिये तत्पर हो जाओ । क्योकि में जानता हूँ कि तुम अपने विव को स्वय ठोक से नही देख पाते, मैं ही तुम्हारे लिये दर्पण बनता हूँ ताकि तुम्हारे उन गुणों को प्रगट कर सक जिन्हे स्वय तुम भी नही जानते) कितु मेरे प्रिय सज्जन লূত { मुम तुम হুড मत कर उठ्ना।! यदि मै साधारण लोगो के साथ हँस-बोल लेता होऊे, थोडी जान-पहचान पर ही कसम खाकर प्रेम दिखाने लगता होऊ, यदि में सामने




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