आन्ध्र का सामाजिक इतिहास | Aandhra Ka Samajik Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनि ११ सच मान लिया जाने के योग्य नहीं है। जैने, एक यूरोपीय मात्री ने लिखा है कि “विदयनगर के महाराजा चूहों, विल्लियो झौर छिपकलियों तक को खा दाते ये ।' भवा बतलाइये, इस कथन पर हम कैसे विश्वास कर ? बह तो सफ़ेद रूठ है । इसी तरह फ़रिश्ता के इतिहास में भी मूठ की भरमार है। “गगादास प्रताप दिलासम्‌” नामक सस्कृत-नाटक में लिखा है कि द्वितोय देवराय के मरते ही उडीसा के राजा झौर बहमनी सुलवान ने मिलक्तर विदयतगर पर चढ़ाई की, पर मल्लिका न ने उन्हें मार सगाया। परन्तु फ़रिग्ता ने इसका उल्लेख तक नहीं किया है । बल्कि फरिश्ता ने तो इसके विपरोत यहाँ सकते लिखा है कि देवराय ने हारकर सुलह दर ली और झपनी बेटी सुलतान के साथ ब्याह दी । पर इस बाते को झन्प क़िसों भी देशो-विदेशी इतिहासक्मार ने नहीं लिखा । से तो समकालीन कब्रियों ने कुछ लिया, और न परवर्तियों से बिसी भी “ंश्यिव' (स्थानीय ঝা) ক झन्दर यह दात नहीं मिलती । क्षिमी कहानी या कहावत में भी इसको नूचना नहीं है । उमर नमय के चित्री से कुछ सहायता मिल सकती थी, लेकिन वे মী मुखलमानो के हाथों में प्रडकर नष्ट हों गए | इस बाल के कई प्रमारा हैं कि क्या राजा, दया रंक झौर वया रानी, सानौ (वेष्या) विजय- समर में सभी अपनी दीवारों पर विदेशी यात्रियो भौर जंगली जानवरों के चित्र सगाए रखते थे। मगर वे राड-मदन झब्र वहाँ हैं। विजयी सुल- तानो ने उन्हें मिट्टी में मिलवा डाला 1 हमारी तीत चौथाई चित्रत्ारो भी नामग्ेष हो কু্দী ই । নংগল কী ইহদাসী ঈ এরা স সী चित्रमानामे होती थो। भ्द উন पुराने वरगल वा नाम-मर ही बच रहा है 1 पुराने लोह-भीतों को एक्त करने की चेष्टा क्दाचित्‌ ही कसी ने को हो। तंदान न्याम्नौ'र छा भी विसी ने कोई आदर नहीं जिया । परिगाय यह हुआ है कि उनमे यि दुद्‌ বাজনার কী ববিলা १. एस० बे० प्रय्यंगर, 'एंड्येंट इंडिया जिल्द २, एष्ठ ४०३ २. परत्टा^-जेसो गेय वोरगायारभरो ।




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