मौलाना रूम | Maulana Room

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Maulana Room by जगदीशचंद्र वाचस्पति - Jagdeeshchandra Vachspati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) नहीं दूर होती तब भो विशेष कष्ट उठाना पड़ता है। प्रयत्न करनेपर यदि दृष्टकी प्राप्ति हो जावे पर कुछ ही समय पाद्‌ লগ होता दिखायी दे तो उससे भो नित्तक्ो श होता है। इस क्लुशको बहुत बुरा समर ऋषियोंने यह मन्त्र उपनिषदमें वर्णित किया है। इसलिये यदि कोई यह चाहे कि मेरे सब कष्ट दूर हों ओर मेरा बेड़ा दुःख-सागरसे निकल आनन्द-तटपर पहुंचे तो उस सन्‍्तप्त हृदयकों उचित है कि आत्मझ्ञानकी नोकामें चढ़कर पार उतरनेकी चेष्टा करे। यह आत्मज्ञान अध्यात्मविद्यासे प्राप्त होता है । इसी लिये जिसने अध्यात्मविया ग्रहण कर ली उसने अपना मनुष्य-जन्म सफल कर लिया और जिसने इस सर्वोत्कृष्ट विज्ञानको छोड़ छोकिक्र विद्याको सीखा वह भारी योटेमें रहा । “हह चेदवेदी दथ सत्यम्स्ति नो चेदवे दी मेहती विनाष्टिः” अर्थात्‌ जिसने मनुष्य-जन्म लेकर आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया उसने सचमुच एक उचित काय किया पर जिस मूलने न जान पाया और दृधर-उधरकी बातोंमें समय गंवाया, उसने बड़ा टोटा उठाया। इसी उत्कृष्ठ और सर्वोत्तम विचारकों भगवान श्रीकृष्णने अपने वचनाखतसे यों कहा है कि-- अध्यात्म विद्या विद्यानाम! फि< जो आत्म-विद्या सब विद्याओंसे उत्तम और उपयोगी है उसका श्रवण, मनन तथा तदनुसार निदिध्यासन करना प्रत्येक सम्रकदार मनुष्य का मुरुष कन्तेव्य हो जाता है ।




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