संपत्ति का उपभोग | Sampatti Ka Upabhog

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Book Image : संपत्ति का उपभोग  - Sampatti Ka Upabhog

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पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube

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मुरलीधर जोशी - Muralidhar Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पत्ति का उपभोग पहला अध्याय उपभोग का महत्व प्रथा फे पच दुस्य विसागों में से एक पिमाग 'खपमोगः है। सायार्णस उपभोग शा मघव फिसी वस्तु पा माग फरना या सेबन करना दोता है। परन्तु चर्थशाल्न मे शस शव्द का प्रयोग कुछ विरोषवा से किया जाता है। उपभोग छा भयं सेवाभों के भौर बसतुओं फे ढस भोग से है जिखस शपभोक्ता फी ভুমি हो। धगर किसी पस्तु झे सेषन करन मे छपमोख को संतोष न दो वो भर्यशासत्र फी दृष्टि से ऐसे मोग को उपभोग नहीं कहते । छगर हम यक रोटी का टुकड़ा आग में डाक्षकर जज्षा डालें षो सांसारिक दृष्टि से उस थस्तु का उपभोग हो चुका, क्योंकि बह और किसी काम फो न रही । परन्तु अयंशात्र को दप्टि से घस অন্তু জা उपभोग नहीं हुआ; क्योंकि उससे उपभोक्ता फी तृप्ति नहीं हुई । हर एक यस्तु में कुछ न कुछ उपयोगिता रहती है। जब हम इस धपयोगिता का इस प्रकार प्रयोग करे धिस प्रर हम एतसे दप्ति या संतोप दो, षमी शम पास्तथ मे खख पस्तु का उपभोग फरवे ! रोटी षा इका खान मेया লাদ ঈ




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