कागज की किस्तियाँ | Kagaj Ki Kihsitya

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Kagaj Ki Kihsitya by लक्ष्मीचंद्र जैन - Lakshmichandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सदा-नीरा करुणा अठ मासकी ज्वाला-सी ऋतु थी । मध्याह्लकी धरापर पाँव रखना दभर थाः। कपिवस्तु ओर कोछिय नगरोकी सीमाओंको विभाजित करने- वाटी नदी रोहिणीकी धार क्षीण होकर एक पतली तरर श्वेत रेखा बन गयी थी । दोनों नगरोंके श्रमिकों और किसानोंमें विवाद उठ खड़ा हुआ था | कपिलवस्तुके श्रमिक बाँध बनाकर रोहिणीका जल अपने लिए सुरक्षित कर लेना चाहते थे और कोलिय नगरके श्रमिक उसी उपाय द्वारा अपने _ लिए । दोनों नगरोंमें ठन गयी । विवाद क्षत्रियों, सामन्‍्तों और सेनापतियों तक पहुँच चुका था । एक दिन प्रातःकाल दोनों ओरके सामन्त शारीरिक ०१ ভোলা 28३... ॥ পপ পপ পলা सामर्थ्यके आधारपर विवादका निर्णय करनेके लिए आ डटे। आवेशमें | वध्वयागंत! की आ्राख्यायिकाएँ प 5




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