खादी के फूल | Khadi Ke Phool

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Khadi Ke Phool by बच्चन - Bachchanश्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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हरिवंश राय बच्चन - Harivansh Rai Bachchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खादी के फूल न हिम किरीटिनी, मौन आज तुम शीश्च भूक्राए , सौ वसंत हों कोम अंगों पर कुम्हलाए! वह जो गोरव शुंग धरा का था स्वर्गोज्वल , टूट गया वह ?7---हुआ अमरता में निज ओम ! लो, जीवन सौदये ज्वार पर आता गांबी , उसने फिर जन सागर मे आभा पुल बंधी ' खोलो, मा, फिर बादल सी निज्‌ कबरीं श्यामल , जन मन के शिखरों पर चमके विद्युत के पल! हृदय हार सुरधुनी तुम्हारी जीवन चंचल , स्वर्णं श्रोणि पर शीश धरे सोया विध्याचल। गज रदनों से शुभ्र तुम्हारे অবলা में घन प्राणों का उन्मादन जीवन करता नतन! तुम अनंत यौवना धरा हो, स्वर्गाकांक्षित , जन को जीवन शोभा दो : भू हो मनुजोचित !




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