श्रावक वनिता बोधिनी | Shravakvnitabodhini

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Shravakvnitabodhini by जयदयालमल्ल जैन - Jaidayalmall Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्र पयाय | ५ ७ तो इनमे भी पकर है 1 पुम्पोने श्चियोफो सतानोत्पत्चि करनेवाटी मशीन समझ ग्वा र । उन्द्‌ सोचना चाध्यि कि दिया उनझे शह-ससार रचनेगे पिश्प म्मी है। ये नो कवल वाहने व्य कमा स ठेनेगद हे 1 च्विया जस यड यछद््‌ सपना राप दती ह पुरुष उसे के यही मोजसे सा पीकर मतु देते ह फिर सिया (त्या ए६[ द जो नाना प्रफारसे শী শ্বীন कीरता ओर सावपामीमे रसोई यनयि तथा আক জী ऊझारय भी सावधानी ओर शझुद्धुतापूपक करें ? कभी फमी तो पेता देखा जाता ई रि भिया तो छुद्ध आचारयुक्त लेती हे मोर अपने रसो आदि कार्ये उस भकार फरती है निसंम टिसादिक दोप र ओर सयम सवे, कोरि या নী ইল चास्मि पकर जान लेती है या पिद्वानोके उपदे- शे मून केती , आर पिचास्ती हे कि यदि हम प्रमाद ओर अतानतामे सिसादिऱ पच पाप उपार्जन करेंगी दो टसका कटुभाफल हम ट भोगना पडेगा । पति तो परक काम देखने आते नहीं, जो उ पाप लेगा स्मरि सिर शोगा । रसल्यि ই জারী पही शे अनुरता रखी '८-त्ररहे योभेकीं शुद्धता, शरीर चस्धाठिककी पवितता, रसोईकफी सामग्रीकी मर्यादा तथा यर्तन्यद्विकी स्वच्छताका यान रस भोजन तयार फरती है; परन्तु पुम्पोका जाचार ऐसा श्रए्ट हो रश है कि जूता पहिने, याजारके कपडोंसे, टकान पर या वोकेफे याहिए ही, अथया हलयाटनीकी दुकानपर ही, शुद्ध अभ्द्ध मिठाई या दूसरी साएग्री ये प्ेमसे उदर-देवकी भेंट करते है। फिर




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