शाद्वल | Shadwal

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Shadwal by लालधर त्रिपाठी - Laldhar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रादरल किसने मोती के हार पिन्हा सायं-प्रातः निमेष-रष् देखा, करता ही रहा नित्य अहरह अट्ट श्रालोक-वृष्टि १ किसके गीले वे अन्तस्तल ! ्राशाऽभिलाष, दुख) देन्य, ताप, चिन्ता, आकुलता, मर्मोञ्ज्वल जिसके तुम एर, अप्रमाण शत-शत रूपों में पड़े निकल ! वह कौन विकल ! जिसके उच्छ वास-श्वास पागल ; तुमको लहरा जाते प्रतिपल , जग देखा करता रूप - राशि आनन्द-मुग्ध, नत-नयन अचल ! हे, जिसके मम्मोघात देख बन निर्निमेष जाते कितने पाषाण पिघल, वह कोन विकल ९ प्रो, भ्रिय शाद्रल !! দ-+8০




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