पगडंडियां | Pagadandiyaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पगडंडियां 3 घूरकर यों देखता जैसे वे बेगानी हों । उसके पास अकारण मत जाना-- ऐसा उन्होंने शुरू शुरू में चुपचाप और फिर खुल्लम- खुल्ला अपने बच्चों को समझाया । एक तरह से यह ठीक ही था । सुक मंदबुद्धि था पर था दीदियों में हट्टा-कट्टा। दीदियों के बच्चे उप्र में उससे बहुत छोटे थे। सुकु अगर हाथ-पैर चलाये या उनका गला ही पकड़ ले तो खैर नहीं । लेकिन सुकु किसी को भी तंग नहीं करता यह सच्चाई सिर्फ सती ही जानती है | प्रत्येक व्यक्ति का अपना तरीका होता है । वासंती दीदी को सुमति दीदी की अपेक्षा सुकु से ज्यादा सहानुभूति थी । छुट्टियों में घर आने पर छोटे भाई को नहलाने धुलाने और उसके साध खेलने में सबको सहायता करती । इतना ही नहीं उसके बारे में सोचकर एकांत में आंसू भी बहाती थी । दीर्घ नि श्वास लेकर कहर्तीं हे भगवान हम यहां क्यों आते हैं ? क्या ये महापाप देखने के लिए आते हैं 2 मगर उसका पति सुधाकर बहुत निष्ठुर था । उसे वासंती का सुकु के प्रति सहानुभूति या सेवाभाव बिलकुल पसंद नहीं था। सुमति दीदी को कहानी तो बिलकुल उल्टी है । उसे केवल अपनी सुख-सुविधाओं और बनकर घूमने से ही फुर्सत नहीं है। अपने बच्चों की तरफ ध्यान देना भी भूल जाती है । वे अगर कुछ पूछें तो उन्हें अपने पिता के पास जाने को कहती है । उसके पति देवन भैया बड़े दयालु हैं । सुक॒ के साथ उठने-बैठने में देवन महाशय को खासी दिलचस्पी थी । वे सुकु को बगीचे में घुमा लाते नारियल का टिकोरा चुन देते और गाना सुना देते । सुमति दीदी खुलेआम कहती कि ऐसा गाना सुनने के लिए उन्हें सुकु के अलावा कोई नहीं मिलेगा । इसीलिए उन्हें सुक इतना प्रिय लगता है । ऐसा कहकर वह अपने पति की तरफ देखकर व्यंग्य भरी हंसी हसती | सुमति दीदी के स्वभाव से परिचित होने के कारण ही जीजाजी हमेशा एक मसखरे की तरह बातें और आचरण करते | घर में स्थाई रूप से रहनेवाले सिर्फ पिताजी नाणियम्मा और सती थे । दोनों दीदियां साल में एक बार आने वाली एकमात्र मेहमान हैं । इस घर-परिवार से अलग हुए लोग अडोस-पड़ोस में रहते हैं । मगर उनमें से शायद ही कोई इस तरफ आता है । छह-सात कोस पर रहनेवाले पिताजी के पुश्तैनी घर में रह रहे रिश्तेदारों को भी स्थिति लगभग यही है । उनमें से जो भलेमानस हैं उनके पास समय नहीं है और जिनके पास समय है उनके पास शराफत नहीं है। उनमें ऐसे भी लोग हैं जो इस परिवार से बेर रखते हैं। सती के पिता हाई कोर्ट के पेंशनयाफ्ता जज थे । वे बड़े लोग हैं यह धारणा उन लोगों के मन में बैठ गयी थी । जब पिताजी नौकरी पर थे तब तो वे परोक्ष रूप से ऐसा कहते थे । पर जब पिताजी ने पेंशन ले ली तो यही बात प्रत्यक्ष रूप से कहने लगे । अपने पापों का फल तो भुगतना ही पड़ेगा सुकु को ध्यान में रखकर वे यह व्यंग्य भी कसते थे उन सबकी यही शिकायत थी कि इतने बड़े ओहदे पर रहकर अगर उनको इच्छा होती




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