भारतीय संस्कृति और नागरिक जीवन | Bharatiy Sanskriti Aur Nagarik Jivan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री रामनारायण 'यदवेन्दू ' - Shri Ram Narayan 'Yadwendu'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिपप-प्रयेश ९
पन होते थे, नागरिक कहुठाते थे ।!
रोम और यूनान के मगर-राज्यो के निवासियों को नागरिक! कटा
ताथा! उम समय नागरिकता से अभिप्राय नागरिक के अधिकारो
होता पा ओर आधृनिकसमयमे भी नागरिकतास्ते यही अभिप्रायहू।
रन्तु आधुनिक युग मे नगर-राज्य नही हैँ । उनके स्थान पर राष्ट्र
ज्य ह । काठान्तर मे नागरिकता की भावनामे भी परिवतन हौ गया
¦ 1 नागरिकता का उरय रोम के छोटे-से नगर-राज्य मे हुजा, परन्तु आधू-
भेक युग में वह समय देश-राज्य और राष्ट्र-राज्य में व्याप्त हो गयी है ।
प्रत्येक नागरिक, चाहे वह नगर-निवासी हो चाहे ग्राम-निवासी, समानरूप
ते नागरिक अधिकारों वा उपभोग कर सकता है।
प्रोफेसर डा० बेन।प्रसाद का यह मत है कि
“अधिकारो फे लिहाज्ञ से ग्रामवासो भी उसी प्रकार नागरिक हे
ज्ञिमत प्रशार हहरवाले। यह बात जरूर हैँ कि नगर राजनीतिक
जीवन, घन, सभ्पत्ता और सस्कृति के केन्द्र हे, किन्तु इसका अर्थ यह
नही हैँ कि शहरयालो के हित फे आगे हम गाँववालो के हित का विचार
न फरें। प्रामवासतियो के हित को नगर-बासियों के हित के अधोन फरना
उचित नही है । दोनो फे हितो पर वरादर ध्यान रखना चाहिए । एसो
प्रकार सयसे कामकफरने फो आज्ञा भो करनो चाहिए 1 व्यवसाय,सम्पत्ति-
रक्षा, न्याय, कोटुम्विक जीवन, धार्मिक तया सास्कृतिक स्वतत्रता, साषं-
जनिक जोवन, तथा सघ-समिति फे अधिकार और उनके साथ छगे हुए
कत्तंव्प गाँववालो से उतना हो सम्बन्ध रखते हैँ जितना कि नगर-
निवासियों से ।/!९
हिन्दी-साहित्य में 'नागरिक' शब्द का प्रयोग नगर-निवासी के अथ॑ में
प्रचीन समयसे होता रहा ह । हिन्दी में 'नागर' या 'नागरिक' शब्द का
१ डा० बेनोप्रसाद नागरिक शास्त्र * चौथा अध्याय, पु० उश-ज्ण्
(छन् १९३७)
२५ उपर्युवत्त 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...