भारतीय संस्कृति और नागरिक जीवन | Bhartiya Sanskriti Aur Nagrik Jeevan

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1074  Bhartiya Sanskriti Aur Nagrik Jeevan 1942 by श्री रामनारायण 'यदवेन्दू ' - Shri Ram Narayan 'Yadwendu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् श्‌ डर विषय-प्रवेश समाज ऐसे व्यक्तियों का समूह है, जिन्होंने व्यवितगंत हिंतो की सार्वजनिक रक्षा के लिए, सावंजनिक व्यवहार में समता उत्पन्न करने- वाले कुछ सामान्य निममों से शासित होने का समझौता कर छिया है । प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत विशेषताएँ होती है। इसी प्रकार समाज की भी विभेषताएँ होती है । समाज में व्यक्ति इन दोनो--व्यक्तिगत एव समाजगत--विशेपताओ की रक्षा के लिए नियम बनाते है । समाज की प्रारम्भिक अवस्था मे ये नियम अत्यन्त स्थूल और सामान्य होते है और जैसे-जसे समाज विकसित और प्रगतिशील होता जाता है, वैसे-वैसे सामा- जिक नियम अत्यन्त विस्तृत, विशद भर जटिल होते जाते है । मानवं- समाज का ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने से यह कथन भली भाँति प्रमाणित होता है। अनेक भारतीय और यूरोपीय राजनीति-विज्ञान-विशारदों का यह मत है कि राज्य की उत्पत्ति से पहले समाज में अराजकता थी । समाज में न्याय और व्यवस्था के स्थान में घक्ति का शासन था । शवित-सम्पन्न व्यक्ति दुबंल व्यक्तियों का दमन करते थे । इसलिए इस दा से तग आकर सबने इ कट्ठे होकर समझौता किया भर उसके फलस्वरूप राज्य की उत्पत्ति हुई । यह सामाजिक समझौता ही राज्य की उत्पत्ति का मूल हैं। मध्यकालीन यूरोपीय विचारक हॉन्स के अनुसार भी राज्य की उत्पत्ति से पूर्व अराजक दशा थी । हॉन्स के कथनानुसार इस अराजक दशा में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से निरन्तर लडा करता था । यह निरन्तर सघर्प की दशा थी । सव एक-दूसरे पर सन्देह और अविर्वास करते थे। जिस तरह गुस्से भेडिये एक-द्रेसरे को मार खाने के लिए एक-दूसरे पर झपटते रहते है, उसी तरह मनुष्य भी भापस में एक-दूसरे का विनाश करने के लिए सघपे करते रहते थे । उस समय न्थाय॑-अन्याय और




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