राजपूताने का इतिहास जिल्द पहली | Raajapuutaane Kaa Itihaas Jilda Pahalii

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Raajapuutaane Kaa Itihaas Jilda Pahalii by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम संस्करण की भूमिका संसार के साहित्य में इतिहांल का आसन बदुत ऊंचा है| शान-संडंर के अन्यान्य विष्यो मे से इतिहास पक ऐसा विपय दे कि उस के अभाव में भनुष्य-जांति अपनी उन्नति करने में समथे नद्ीं हों सकती । सच तो यह हे' कि इतिहास से मानव-समाज का बटुत कुछ उपकार होता है। देशों, जाः तियों, राष्ट्रों तथा मद्दापुरुषों के रहस्यों को प्रकट करने के लिए इतिहास पक अमोघ साधन है । किसी जाति को सजीव रखने, अपनी उन्नति करने तथा उसपर टद्‌ रहकर सदा श्रग्रसर हाते रहने कै लिप संसार में इति- हास से बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है । अतीत गोरव तथा घटनाओं के डदाहरणों से मनुष्य-जाति एवं राष्ट्रों में जिस संजीवनी शक्ति का सञ्जार होता दे उसे इतिहास के सिवा अन्य उपायों से प्राप्त करके सुरक्षित रखता कठिन ही नहीं प्रत्युत एक प्रकार से असंभव हे । इतिदास का महत्त्त तथा डसकी उपयोगिता बतलाने के लिप किसी विशद्‌ विवेचन की आवश्यकता नहीं दे । शिक्षित समाज अब इस बात को भलीभांति समभने लग गया है कि इतिहास भूतकाल की अतीत स्प्रति तथा भविष्यत्‌ की अटश्य खषिको क्लानरूपी किरणो-दारा सद्‌ा प्रकाशित करता रहता है । परथ्वीतल की किसी जाति का स्ताहित्य-भरडार डस समय तक पूर्ण नहीं माना जा सकता, जब तक इतिहासरूपी সমুহ रनों को भी उसमें गोरबपूर्ण स्थान न मिला हो; क्योंकि शअ्रधःपतित एव दीघेनिद्रा में पड़ी हुई जाति के उत्थान एवं जागृति के अ्रन्यान्य साध्रनों में डस्तका इतिदास भी एंक सर्वोत्कए एवं आवश्यक साधन दे। यूरोप के सुप्रसिद्ध अंग्रेज़ राजनीतिश एडमेंड बके का कथन दे कि इतिहास डदा- हरो के साथ-साथ तत्त्यक्ञान का शिक्षण दे । जब हमको किसी देश हझाथवा जाति के प्राचीन इतिद्दास का परिचय हदो, जव हम यद जानते हो




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