सम्मेलन पत्रिका | Sammelan Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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No Information available about श्री. रामप्रताप त्रिपाठी शास्त्री - Shree Rampratap Tripati Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हनवो कं पौराणिक नाक द
सीस्कृत कं अनेक नाटको करा आदक्षं ओौरं छाया ग्रहण करके भारतेन्ु जी ने “सत्य हरि्चन््र,
बदरीनाथ भट्ट ने “करुन दहन” ओर कंलासनाथ भटनागर ने “भीम-प्रतिशा” जैसे माट
लिखे । विदश्च कं रोमाटिक ड़ामा का प्रभाव अंधिकलि मे द्विजन्द्र-साहित्य (बंगला) के माध्यम
द्वारा हिन्दो-नाटक में आया' है। |
संस्कृ से किये गये अनृदित नाटको को संख्या पर्याप्त है। भास, कालिदास, भवभूति,
भटरनारायण आदि प्रसिद्ध नाटको का अनुवाद हिन्दी मे आया । अनुवाद क्र दृष्टि से राजा लक्ष्मण-
सिह कृत “अभिज्ञान शाकुतलम्'* का अनुवाद ओर सत्यनारायण कविर कृत ““उत्तररामरिप”
का अनुवाद सुन्दर है । १० गोकुल चन्द शर्मा ने परशुराम नारायण पाटणकर कं “बीर धर्मदर्षण
का अनुवाद इतना सुन्दर किया है कि आचाय॑े महावीरप्रसाद दिवेवी ने भी उसकी प्रासा की
थी । भावानुवाद की दुष्टि मे दिटनाग के “करन्दमाला ' का सत्यन्द्रशरत् कृत अनुबाद सुन्दर है ।
नगला मे मादकंल मधुसूदनदत्त की “शमिष्ठा'', मनमोहन वसु की “सती”, दिजेन््र-
लालराय की “सीता ', गौर रबिबाबू कं “चित्रागदा'” आदि कं अनुवाद सुन्दर हुए है, पर करई
बगला के सुन्दर पौराणिक नाटकों के अनुवाद अभी हिन्दी मे अपेक्षित है। मराठी से मामा
बरेरकर की भूमि कन्या सीता का अनवाद किया गया है, यह केवल एक ही मराठी पौराणिक
नाटक का अनुवाद है, वह भी सनोषजनक नही हे । गुजराती मे मुगीजी के प्राय सभी पौराणिक
नाटको के अनुवाद हिन्दी मे हुए हे, ये प्राय सुन्दर हँ, अन्य किमी गुजराती नाटककार की पौग-
णिक रचना का हिन्दी-अनृवाद देखने मे नही आत्ता ।
उस अनुवाद-कायं पर दृष्टिपात करने से पूरा सतोप वही होता, न सख्या की दृष्टि से,
न कर्य की दृष्टि सं । संस्कृत कं अति प्रसिद्ध नाटक ही हिन्दी. अमी आ चक है, अनेक सुन्दर नाटको
का अनुवाद अभी अपेक्षित है। सरक्ृत की नाटय-रचना पर्याप्त प्रौढ है, उनके पीछे अतीत
भारत की कला, पाडित्य और विशेष दृष्टिकोण छिपा पडा है। उनका हिन्दी-अनुवाद प्रस्तुत
होने पर हमें अपनी कला के प्रौढ दर्शन ही न होगें, हमे एक नवीम विचार-शक्ति और नयी प्रेरणा
प्राप्त होगी ।
बगला स ॒हुभा अनुवाद-कायं उतना सतोषप्रद नही है, फिर भी अभी ओौर प्रगति
की आवरयकता है ।
मराठी से जो कार्य किया गया है, उस पर तो लज्जा लगती है। मराठी नाटक-रचन।
की दृष्टि से भारत की अतिसमुद्ध भाषा है। उसके नाटक साहित्यिकंता के साथ-साथ रगभच की
दृष्टि से भी पूर्ण हैं। इतना विशाल और पूर्ण नाटक-भडार अभी राष्ट्र-भाषा हिन्दी के पाठको-
प्रक्षको से दूर है ओर व चुप हं, यह् सोचकर मी आश्चयं होता है । हिन्दी-नाटच-कला की समृद्धि
कं लिये मराटी-नाटको कं अनुवादौ की बडी आवद्यकता है ।
गुजराती-नाटको के अनुवाद की ददा भी कुछ उच्छी नही, श्री कन्हैयालाल मुझी के
१ डा० मणे, आधनिक हिन्बी नाटक, पृष्ठ २1
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